कार्तिक मास हिंदू धर्म के लोगों के लिए बेहद खास होता है। इस पावन महीने में एक के बाद कई सारे त्योहार आते हैं। वहीं इस दौरान तुलसी विवाह भी आता है। इस बार ये त्योहार 24 नवंबर को मनाया जा रहा है । धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस तिथि पर भगवान श्रीहरि विष्णु के साथ तुलसी जी का विवाह होता है। वहीं ये भी कहा जाता है कि इस दिन सृष्टि के रचयिता भगवान विष्णु अपनी चार महीने की नींद से जागते हैं।
तुलसी विवाह के पीछे पौराणिक कथा
ये प्रथा पौराणिक काल से चली आ रही है। हिन्दू पुराणों के अनुसार तुसली एक राक्षस कन्या थीं जिनका नाम वृंदा था। राक्षस कुल में जन्मी श्रीहरि विष्णु की परम भक्त थीं। वृंदा का विवाह जलंधर नामक पराक्रमी असुर से करा दिया गया। वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त होने के साथ ही एक पतिव्रता स्त्री भी थी जिसके परिणामस्वरुप जालंधर अजेय हो गया। जिसकी वजह से जलंधर को अपनी शक्तियों पर अभिमान होने लगा और उसने स्वर्ग पर ही आक्रमण कर दिया। जलंधर ने देव कन्याओं को अपने अधिकार में ले लिया। इससे क्रोधित होकर सभी देव भगवान श्रीहरि विष्णु की शरण में गए और जलंधर के आंतक का अंत करने की प्रार्थना करने लगे, परंतु जलंधर का अंत करने के लिए सबसे पहले उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग करना अनिवार्य था। इसलिए भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के पतिव्रत धर्म में नष्ट कर दिया। जिसके बाद जलंधर की शक्तियां खत्म हो गईं और वो युद्ध में मारा गया। जब वृंदा को श्रीहरि के छल का पता चला तो, उन्होंने भगवान विष्णु से कहा हे नाथ मैंने आजीवन आपकी आराधना की, आपने मेरे साथ ऐसा कृत्य कैसे किया? इस प्रश्न को कोई उत्तर श्रीहरि के पास नहीं था। वे शांत खड़े सुनते रहे और वृंदा ने विष्णु जी को पत्थर का बनने का अभिशाप दिया। भगवान विष्णु को शाप मुक्त करने के बाद वृंदा जलंधर के साथ के साथ सती हो गई। इसके बाद सती की राख से पौधा निकला , जिसे श्रीहरि विष्णु ने तुलसी नाम दिया और ये वरदान भी दिया की तुलसी के बिना मैं किसी भी प्रसाद को ग्रहण नहीं करुंगा। उन्होंने कहा कि शालिग्राम के रूप में उनका तुलसी से विवाह होगा, जिस वजह से आज तक तुलसी विवाह का पर्व मनाया जाता है।
तुलसी विवाह की विधि
कार्तिक के महीने में नित्य तुलसी पूजन करना चाहिए और तुलसी जी के चरणों में शुद्ध देसी घी का दीपक अवश्य जलाना चाहिए। इससे सारे पापों से मुक्ती मिलती है। वहीं कार्तिक माह में तुलसी विवाह करने पर तो कान्यादान जितना पुण्य मिलता है। वहीं सुहागिन महिलाओं को तो तुलसी विवाह जरूर करना चाहिए। इससे दंपत्य जीवन सुखी रहता है। सुहागिन महिलाएं साफ कपड़े पहनकर पहले तो तुलसी के पौधे के आसपास सफाई करें। तुलसी को दुल्हन की तरह सजाएं। उसके बाद गमले को साड़ी में लपेटकर तुलसीजी को चूड़ी पहनाकर उनका 16 श्रृंगार करें। पूजन श्री गणेश जी की वन्दना के साथ प्रारम्भ करके सभी देवी-देवताओं का तथा श्री शालिग्रामजी का विधिवत पूजन करना चाहिए। पूजन करते समय तुलसी मंत्र (तुलस्यै नमः) का जप करें। इसके बाद एक नारियल दक्षिणा के साथ टीका के रूप में रखें। भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसीजी की सात परिक्रमा करें। आरती के बाद विवाह संपन्न हो जाता है। बता दें विवाह में जो सभी रीति-रिवाज होते हैं उसी तरह तुलसी विवाह के सभी कार्य किए जाते हैं।