महंगे कपड़े और बड़ी गाड़ियां ही आपको पावरफुल दिखाते हैं, बहुत से लोग ऐसा ही सोचते हैं लेकिन इस सोच को गलत साबित कर दिया नंगे पांव चलकर पद्मश्री लेने पहुंची कर्नाटक की 72 साल की तुलसी गौड़ा ने जिनका नाम आज एक आम यूजर्स से लेकर बड़ा नेता, बड़े आदर से ले रहा है, यहां तक कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने भी उनके आगे हाथ जोड़े और उन्हें शत-शत नमन किया है।
कौन हैं तुलसी गौड़ा जिनके बारे में आज हर शख्स जानना चाहता है चलिए आज के पैकेज में तुलसी गौड़ा और उनके जीवन के बारे में आपको बताते हैं। हाल ही में 9 नवबंर को राष्ट्रपति भवन में पद्म सम्मान दिए गए। 73 हस्तियों में देश की नामी महिलाएं भी शामिल रहीं और इन्हीं में शामिल थी कर्नाटक की पर्यावरण संरक्षक तुलसी गौड़ा, जिन्हें 'इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फॉरेस्ट' भी कहा जाता है।
जब वो पद्म सम्मान लेने पहुंची तो तुलसी की सादगी ने हर किसी को अपनी ओर आकर्षित किया। वह आदिवासी लिबास में एक धोतीनुमा कपड़ा लपेटे, नंगे पैर ही राष्ट्रपति भवन पहुंची थीं और उनके इसी सादे पहरावे ने सबको अपनी ओर आकर्षित किया। ट्विटर पर कई लोगों ने इस तस्वीर को 'इमेज ऑफ द डे' कैप्शन देकर शेयर किया। सोशल मीडिया पर नंगे पांव और धोतीनुमा पारंपरिक कपड़े पहने तुलसी गौड़ा की तस्वीरें जमकर वायरल हो रही है, जिसने लोगों का दिल जीत लिया है। उनकी सादगी और कार्यों से पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भी बहुत प्रभावित हुए। ये तो थी उनके सादे जीवन की झलक लेकिन तुलसी पिछले 6 दशक से सोशल सर्विस कर रही हैं। चलिए उनके सराहनीय कार्यों के बारे में भी आपको बताते हैं जिसके लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
तुलसी अब तक करीब 30 हजार से ज्यादा पेड़ पौधे लगा चुकी हैं। उन्हें पौधों और जड़ी-बूटियों की विविध प्रजातियों का व्यापक ज्ञान है लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि कर्नाटक के एक छोटे से गांव होनाली की रहने वाली तुलसी कभी स्कूल नहीं जा पाई। गरीबी के चलते उनका जीवन इतना आसान नहीं रहा। इसके बावजूद उनके पास पेड़-पौधों और वनस्पति का इतना ज्ञान प्राप्त है कि उन्हें 'इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फॉरेस्ट' कहा जाने लगा। तुलसी गौड़ा कर्नाटक में हलक्की स्वदेशी जन-जाति से ताल्लुक रखती हैं।
वो सिर्फ 3 साल की थी जब उनके पिता का देहांत हो गया था। वह बहुत छोटी थी जब से वह अपनी मां के साथ नर्सरी में काम करती थीं। बस वहीं से उनका लगाव पेड़ पौधों के साथ हो गया था। 12 साल की उम्र में ही वो पेड़-पौधे लगा रही हैं। वह वन विभाग की नर्सरी की देखभाल करती हैं। वह कई पौधों के बीजों को इकट्ठा करती हैं, गर्मियों के मौसम तक उनका रखरखाव करती हैं और फिर सही समय पर जंगल में बीज बो देती हैं। सिर्फ पहरावा नहीं उनका खान-पान वह बाकी दिनचर्या भी एक दम साधारण है। वह लकड़ियों के चूल्हे पर खाना बनाती हैं। अपना पूरा जीवन उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित कर दिया जिसके चलते उन्हें पद्म सम्मान से सम्मानित किया गया है।
पहले उन्होंने वन विभाग में एक अस्थायी स्वयंसेवक के तौर पर काम किया लेकिन बाद में जब उन्हें प्रकृति संरक्षण के प्रति समर्पण के लिए जाना जाने लगा तो उन्होंने स्थायी नौकरी की पेशकश दी गई। तुलसी गौड़ा अपने महत्व को बढ़ावा देने के लिए पौधों का पोषण के साथ युवा पीढ़ी को ज्ञान भी दे रही हैं।
उनके इन्हीं सामाजिक कार्यों और पर्यावरण के प्रति योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। इससे पहले भी तुलसी गौड़ा को पर्यावरण संरक्षण के उनके प्रयासों के लिए 'इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र अवॉर्ड, 'राज्योत्सव अवॉर्ड' और 'कविता मेमोरियल' जैसे कई अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
गरीबी के चलते वह ना तो पढ़ी-लिखी थी और ना ही उनके पास इतना पैसा था लेकिन एक चीज उनके पास थी वो थी दृढ़ संकल्प। अपने पर्यावरण से प्यार जिसके सरंक्षण के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन न्योछावर किया दिया। उनके सराहनीय कार्य के लिए नारी उन्हें शत-शत नमन करता है।
तुलसी गौड़ा का ये निस्वार्थ प्रेम कइयों को प्रेरणा दे रहा है पर्यावरण है तो हम हैं इसलिए इसको सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी भी हमारी ही है।