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पैर खोने के बाद भी नहीं मानी हार, नृत्य में बनाई पहचान

  • Edited By Priya verma,
  • Updated: 07 Jan, 2019 02:17 PM
पैर खोने के बाद भी नहीं मानी हार, नृत्य में बनाई पहचान

सुधा चंद्रन टीवी और फिल्म जगत का जाना पहचाना नाम है। डांस की शौकीन और अपनी दमदार एक्टिंग की वजह से इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने वाली सुधा को जिंदगी में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। बिना पैर एक बेहतरीन नृत्यकार बन कर उन्होंने दुनिया के लिए एक मिसाल कायम की है। आइए जानें, उनकी जिंदगी की कुछ बातें। 

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3 साल की उम्र में सीखना शुरू किया डांस 

मध्यवर्गीय परिवार से संबंध रखने वाली सुधा चंद्रन का जन्म 21 सितम्बर 1964 को केरल राज्य में हुआ था। अपनी पढ़ाई उन्होने मुंबई से की। बचपन से ही उन्हें डांस का बहुत शौक था और अपने इस जुनून को पूरा करने के लिए उन्होंने 3 साल की उम्र में शास्त्रीय नृत्य सीखना शुरू कर दिया था। 

 

16 साल तक किए 75 से ज्यादा स्टेज शो

सुधा जी शास्त्रीय नृत्य में माहिर हैं और इसके लिए वे कई राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय पुरस्कार भी हासिल कर चुकी हैं। 5 साल से 17 साल की उम्र तक उन्होंने 75 से भी ज्यादा स्टेज शो करके भरतनाट्यम कलाकार के रूप में शोहरत हासिल कर ली थी। 

 

17 साल की उम्र में गवाना पड़ा पैर 

एक बार वे अपने पिता जी साथ बस में सफर कर रही थी दुर्घटनावश उनकी बस का एक्सीडेंट हो गया। इस घटना में उनके पैर में चोट आई और डॉक्टरों द्वारा इलाज शुरू हुआ। कुछ देर बाद पता चला की उनके पैर में गैंग्रीन (Gangrene)हो गया है। डॉक्टर्स को सुधा जी की जान बचाने के लिए उनका पैर काटना पड़ा। उस समय उनकी उम्र सिर्फ 17 साल की थी। 

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नकली पैर ने दिखाई नई राह

सुधा जी हार कर बैठने वालों में से नहीं थी। आप्रेशन के जरिए उन्हें जयपुर पैर (Jaipur leg) लगाया गया। धीरे-धीरे इसके साथ उन्होंने चलना सीखा जिसमें उन्हें लगभग 2 साल का समय लगा और इसके बाद सुधा ने दोबारा डांस करना शुरू किया।

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स्टेज परफॉर्मेंस में मिली खूब वाहवाही 

हादसे के बाद पहली बार उन्हें सेंट जेवियर्स स्टेज परफॉर्म करने का ऑफर आया। वे उस समय बहुत डरी हुई थीं लेकिन डांस के बाद उन्हें स्टैंडिंग ओवेशन मिला। इससे उनके पिता बहुत खुश हुए और बेटी के पैर छूते हुए कहा कि मैं सरस्वती के पैर छू रहा हूं, तुमने नामुमकिन को मुमकिन कर दिया। 

 

डांसर के साथ एक्ट्रेस भी है सुधा चंद्रन

अपनी विकंलाकता को उन्होंने अपनी कमजोरी नहीं बल्कि हिम्मत बनाया। जो कई महिलाओं के लिए प्रेरणा है। 1984 में सुधा की जिंदगी पर तेलुगु में मयूरी नाम की फिल्म बनाई जिसमें मुख्य पात्र की भूमिका भी सुधा ने ही निभाई। बाद में इस फिल्म का हिंदी में भी अनुवाद किया गया। इसके लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। इसके अलावा शोला और शबनम, अंजान, हम आपके दिल में रहते हैं, शादी करके फंस गया यार, मालामाल वीकली आदि के साथ साउथ की कई फिल्मों में काम कर चुकी हैं।

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दिए कई हिट टीवी शोज 

टीवी इंडस्ट्री में सुझा 90 दशक से एक्टिव हैं उनका फेसम किरदार टीवी सीरियल कहीं किसी रोज में रमोला का था। इसके अलावा बहुरानियां, हमारी बहू तुलसी, चंद्रकांता, जाने भी दो पारो, चश्मे बद्दूर, कस्तूरी, क्योंकि सास भी कभी बहू थी, शास्त्री सिस्टर आदि में काम किया। 


 

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