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बचपन खत्म कर रही बाल विवाह प्रथा को लेकर कोर्ट का चौंकाने वाला फैसला

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 21 Sep, 2021 12:08 PM
बचपन खत्म कर रही बाल विवाह प्रथा को लेकर कोर्ट का चौंकाने वाला फैसला

बाल विवाह के खिलाफ लड़ने के लिए कई कानून बनाए जाने के बावजूद भी यह प्रथा भारत समेत दुनिया भर में आज भी जारी है।  बाल विवाह के मामलों में  बढ़ोतरी के बीच पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने ऐसा फैसला सुना दिया है, जो कई लडकियों के जीवन पर गहरा असर डाल सकता है। 


कोई भी बाल विवाह अमान्य नहीं होता: कोर्ट


कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि यदि कोई भी नाबालिग 18 साल की उम्र पूरी होने पर विवाह का विरोध नहीं करता है तो उस विवाह को मान्य करार दिया जाएगा। कोर्ट का कहना है कि कोई भी बाल विवाह अमान्य नहीं होता है, बल्कि अमान्य करने योग्य होता है। नाबालिग के 18 साल की उम्र पूरी होने पर उसका विरोध करने पर ही विवाह को अमान्य करार दिया जाएगा।


एक दंपत्ति ने तलाक की याचिका की दायर 


दरअसल  2009 में शादी करने वाले एक दंपत्ति ने तलाक की याचिका दायर की थी, जिस पर  कोर्ट ने कहा कि  वह 2009 से 2017 तक पति के साथ रही। ऐसे में विवाह मान्य हो गया। कोर्ट ने कहा कि विवाह के समय महिला की उम्र 17 साल छह महीने और आठ दिन थी। 18 साल की उम्र पूरी होने पर वह हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 11 के तहत विवाह को अमान्य घोषित करने के लिए याचिका दायर कर सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं किया


 बाल विवाह के मामलों में बढ़ोतरी 


हालिया आंकड़ों के अनुसार 2020 में बाल विवाह के मामलों में उसके पिछले साल की तुलना में करीब 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई। विशेषज्ञों का कहना है कि इसका आशय सिर्फ यह नहीं कि ऐसे मामलों में बढ़ोतरी दर्ज हुई है, बल्कि यह भी है कि ऐसे मामलों के सामने आने की दर बढ़ी है।

 

कर्नाटक में सबसे अधिक मामले 


एनसीआरबी के 2020 के आंकड़ों के मुताबिक, बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत कुल 785 मामले दर्ज किए गए। कर्नाटक में सबसे अधिक 184 मामले दर्ज किए गए। इसके बाद असम में 138, पश्चिम बंगाल में 98, तमिलनाडु में 77 और तेलंगाना में 62 मामले दर्ज किए गए। इस अधिनियम के तहत 2019 में 523 मामले जबकि 2018 में 501 मामले दर्ज किए गए थे। 

 

 18 वर्ष से कम उम्र की युवती आती है बाल विवाह की श्रेणी में 


आंकड़ों के मुताबिक, बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत 2017 में 395, 2016 में 326 और 2015 में 293 मामले दर्ज किए गए थे। भारतीय कानून के मुताबिक, 18 वर्ष से कम उम्र की युवती या 21 वर्ष से कम उम्र के पुरुष की शादी बाल विवाह की श्रेणी में आती है। विशेषज्ञों का कहना है कि किशोर लड़कियों के प्यार में पड़ने और भाग जाने और शादी करने की घटनाओं में वृद्धि हुई है, जो बाल विवाह की संख्या में वृद्धि में भी योगदान देती है।”
 

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