नारी डेस्क: कोलकाता में महिला डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के बाद लोगों का गुस्सा उबल रहा है। यह पहली बार नहीं है कि देश इस तरह की घटना सामने आई है। अगर इसे लेकर कोई कदम नहीं उठाया गया तो इस तरह की घटनाएं और बढ़ती चली जाएंगी और ना जाने कितनी बच्चियों और महिलाओं की जिंदगी तबाह हो जाएगी।
महिलाओं को खुद करनी होगी अपनी रक्षा
ऐसा नहीं है कि निर्भया से पहले महिलाओं पर यौन उत्पीड़न की कोई भयावह घटना नहीं हुई थी। ऐसी घटनाएं हुई थीं, लेकिन निर्भया के मामले ने महिलाओं की सुरक्षा (या इसकी कमी) के मुद्दे को सामने ला दिया, और इसके परिणामस्वरूप महिलाओं को अधिक सुरक्षा और कानूनी सहायता प्रदान करने वाले कानून बनाए गए। कड़े उपाय लागू किए गए हैं, फिर भी देश भर में घटनाएं होती रहती हैं, ऐसे में अब समय आ गया है कि महिलाएं अपनी सुरक्षा अपने हाथों में लें।
गंभीर मुद्दों पर सोचने की जरूरत
देश भर में महिलाओं के खिलाफ अपराध इतने नियमित हो गए हैं कि अब ध्यान इस ओर जाना चाहिए कि महिलाओं को इस तरह से सशक्त बनाया जाए जिससे उन्हें अपने पेशेवर और निजी जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में आत्मविश्वास और सुरक्षा मिले। समाज या उसकी अनियमितताओं पर दोष मढ़ने से हमें इस तरह के गंभीर मुद्दों से लड़ने में मदद नहीं मिलती है। यह तब और भी बुरा हो जाता है जब महिलाओं को खुद ही उन दुर्व्यवहारों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है जिनका वे सामना करती हैं।
स्कूलों में पढ़ाना चाहिए ये पाठ
इसी बीच सवाल यह भी है कि स्कूल के पाठ्यक्रम में मार्शल आर्ट और अन्य आत्मरक्षा पाठ अनिवार्य क्यों नहीं किए जा सकते? अगर खेल या पीटी का पीरियड हो सकता है, तो मार्शल आर्ट का पीरियड भी हो सकता है। जो माता-पिता बेहतर जानकारी रखते हैं वे अपनी बेटियों को आत्मरक्षा कार्यक्रमों में नामांकित करते हैं, लेकिन ऐसे माता-पिता बहुत कम हैं। असली अंतर तभी देखा जाएगा जब हर स्कूल जाने वाले बच्चे को अपनी शारीरिक शक्ति के बल पर अपराधी को दूर भगाने की तकनीक सिखाई जाएगी। आत्मरक्षा प्रशिक्षण के माध्यम से बच्चे अपनी सुरक्षा के लिए आवश्यक तकनीकें और रणनीतियां सीखते हैं, जो उन्हें खतरनाक परिस्थितियों से निपटने में मदद करती हैं।
आत्मरक्षा प्रशिक्षण में क्या सिखाया जाता है?
पंच और किक: बच्चों को सही तरीके से पंच और किक मारना सिखाया जाता है, ताकि वे खुद को हमलावर से बचा सकें।
ब्लॉकिंग और डिफ्लेक्टिंग: बच्चों को सिखाया जाता है कि कैसे हमलों को ब्लॉक करना या उन्हें डिफ्लेक्ट करना है, जिससे वे खुद को चोट से बचा सकें।
फ्रीज, फ्लाइट, फाइट: बच्चों को यह समझाया जाता है कि किसी भी खतरनाक स्थिति में उन्हें शांत रहकर सोच समझकर प्रतिक्रिया करनी चाहिए।
सिचुएशनल अवेयरनेस (स्थिति की जागरूकता): बच्चों को सिखाया जाता है कि वे अपने आसपास की स्थिति के प्रति जागरूक रहें। यह उन्हें किसी भी असामान्य गतिविधि को पहचानने और समय पर प्रतिक्रिया देने में मदद करता है
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सुरक्षा के लिए आवाज़ का प्रयोग: बच्चों को सिखाया जाता है कि अगर वे किसी खतरे में हैं, तो जोर से चिल्लाकर या "बचाओ" कहकर मदद मांगे। यह आसपास के लोगों का ध्यान आकर्षित करता है और मदद मिलने की संभावना बढ़ जाती है।
साहस और आत्मविश्वास: आत्मरक्षा प्रशिक्षण बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ाता है, जिससे वे किसी भी चुनौतीपूर्ण स्थिति में घबराते नहीं हैं और सोच-समझकर प्रतिक्रिया कर पाते हैं। उन्हें यह भी सिखाया जाता है कि अगर कोई उन्हें धमकी दे रहा है, तो डरने की बजाय शांत रहकर सही निर्णय लें।
फिजिकल स्ट्रेंथ और फिटनेस: बच्चों की शारीरिक फिटनेस को बढ़ावा दिया जाता है, जिससे वे शारीरिक रूप से मजबूत होते हैं और किसी भी हमले से बचने के लिए तैयार रहते हैं।
बच्चे कैसे कर सकते हैं खुद की रक्षा?
- बच्चों को सिखाया जाता है कि वे अपने आसपास के लोगों और परिस्थितियों पर ध्यान दें और किसी भी असामान्य गतिविधि को तुरंत पहचानें।
- बच्चों को अकेले यात्रा करने से बचने के लिए कहा जाता है। उन्हें अपने दोस्तों के साथ रहना चाहिए, जिससे खतरे की संभावना कम हो जाती है।
- बच्चों को सिखाया जाता है कि अगर वे किसी खतरनाक स्थिति में हैं, तो वे तुरंत सही प्रतिक्रिया दें, जैसे भागना, चिल्लाना या हमले का सामना करना।
- बच्चों को यह सिखाया जाता है कि अगर उन्हें किसी स्थिति में खतरा महसूस हो रहा है, तो वे तुरंत सुरक्षित स्थान पर जाएं या मदद के लिए किसी विश्वसनीय व्यक्ति से संपर्क करें।
- आत्मरक्षा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है कि बच्चे खुद पर विश्वास रखें। उन्हें यह समझना चाहिए कि वे किसी भी स्थिति से निपटने में सक्षम हैं।
आत्मरक्षा के लाभ
-बच्चे खतरे से खुद को बचाने के लिए सक्षम होते हैं।
- उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और वे अपने निर्णयों में ज्यादा मजबूत होते हैं।
-शारीरिक रूप से फिट रहते हैं, जो उनके संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
- वे मानसिक रूप से सशक्त होते हैं, जिससे वे मुश्किल परिस्थितियों में घबराते नहीं हैं।
बच्चों को आत्मरक्षा सिखाना उनके जीवन के लिए एक महत्वपूर्ण निवेश है। इससे वे न केवल शारीरिक रूप से सुरक्षित रहते हैं, बल्कि मानसिक रूप से भी मजबूत बनते हैं, जो उन्हें जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करता है।