हम सभी अपने बच्चों के लिए सबसे अच्छा चाहते हैं लेकिन माता-पिता बनना हमेशा आसान नहीं होता। माता-पिता हर बच्चे के जीवन में सबसे जरूरी लोग होते हैं। यूनिसेफ का मानना है कि माता-पिता की जिम्मेदारी निभाना दुनिया का सबसे बड़ा काम है। किसी व्यक्ति के जीवन भर की पूंजी, पैसा, जेवर जमीन आदि को यदि तराजू के एक ओर और दूसरी ओर एक संस्कारी पुत्र को रख दिया जाए तो संस्कारी पुत्र का पलड़ा भारी रहेगा क्योंकि एक सुपुत्र ही किसी व्यक्ति के जीवन भर की महत्वपूर्ण कमाई है।
कहा भी गया है- "पूत सपूत काहे धन संचय, पूत कपूत काहे धन संचय" अर्थात पुत्र यदि संस्कारी है तो मां-बाप को धन के संचय की क्या आवश्यकता है। वह अपनी योग्यता से अपने आप ही धन अर्जित कर लेगा और अगर पुत्र कपूत है तो भी धन संचय करने से क्या फायदा क्योंकि कपूत अपनी बुरी आदतों से सारा धन उड़ा देगा। महान चाणक्य ने भी कहा है की पुत्र को 5 वर्ष तक प्रेम करना चाहिए और फिर 10 वर्ष तक कड़ी निगरानी में रखें, उसके पश्चात अर्थात 16 वर्ष के बाद पुत्र के साथ मित्र जैसा व्यवहार करना चाहिए लेकिन जाने-अनजाने में हमसे कुछ ऐसी गलतियां हो जाती हैं, जिसके कारण हमारा बच्चा हमारी ही नहीं सुनता। माता पिता होने के नाते हमें उन बातों को जानना और समझना बहुत जरूरी है।
• डर के साथ सुझाव
माता पिता अपने बच्चे को सही गलत की पहचान कराएं किंतु डर के बिना।उदाहरण के तौर पर मां का आम तौर पर कहना, खाना खाले वरना पापा से शिकायत कर दूंगी… पढ़ ले वरना हॉस्टल में डाल दूंगी l वो कहते हैं ना कि इतना भी मत डराओ कि डर का डर खत्म हो जाए l इस तरह जब आप डर के साथ कोई सुझाव देते हैं तो एक समय पर बच्चा आपकी बात मानने से इंकार कर देता है l बच्चा आपकी बात ध्यान से सुनना छोड़ देता हैl आपका आदर करना छोड़ देता हैl बच्चे को नकारात्मक नहीं अपितु सकारात्मक सुझाव देंl
• बहुआयामी परवरिश
अधिकतर यह होता है की अपने बच्चे को लेकर माता-पिता की सोच भिन्न होती है। दोनों ही अपने अनुसार बच्चे की परवरिश करना चाहते हैं। हमें अच्छे मम्मी-पापा ही नहीं बल्कि सच्चे मम्मी पापा बनना है। आज के समय में माता और पिता को एक टीम बन कर काम करना पड़ेगा। एक समय में अगर मां बच्चे को डांट रही है तो पिता को उस वक्त बच्चे की तरफदारी ना कर चुप रहना चाहिए और अकेले में आपस में बात करनी चाहिए। बच्चा इस बात को समझता है। वह यह समझ जाता है कि उसे अपने पिता से कौन सा काम करवाना है और अपनी मां से कौन सा काम करवाना है। वह घर में ही राजनीति शुरू कर देता है। बच्चों के सामने माता पिता को आपस में आदर से बात करनी चाहिए और एक दूसरे से असहमति नहीं दिखानी चाहिए। अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। माता-पिता की टीम जितनी अच्छी रहेगी, बच्चों की परवरिश उतनी ही अच्छी होगी।
• संघर्ष के बिना हर चीज दे देना
हर माता-पिता चाहता है कि उन्हें जो जीवन में नहीं मिला वह अपने बच्चों को देंl बिना संघर्ष के मुंह मांगी वस्तु बच्चों को दे देना उस वस्तु की कीमत को ही सिर्फ कम नहीं करता अपितु वस्तु देने वाले माता-पिता की कीमत को भी कम करता है। फिर बच्चे को लगता है कि सारी चीजें लेना उसका अधिकार है। वह अनुशासन में नहीं रहता।
• नैतिक कहानियां
एक बार आइंस्टाइन से पूछा गया कि बच्चों को जीनियस बनाने के लिए क्या किया जाए तो आइंस्टाइन का जवाब था कि बच्चों को कहानियां सुनाई जाए। बच्चों को कोई भी बात समझाने का सही तरीका है नैतिक कहानियां। कहानियों के माध्यम से बच्चे बहुत जल्दी और आसानी से समझ जाते हैं।
• जादू की झप्पी
बच्चे को सोने से पहले, उठने के बाद एक जादू की झप्पी जरूर दें। बच्चा यदि गुस्से में है तो उसे गुस्से से ना समझा कर मुस्कुरा एक जादू की झप्पी कर जरूर दें। गारंटी है कि बच्चे का गुस्सा शांत हो जाएगाl आजकल के बच्चे प्यार से मानते हैं, डांट फटकार से नहीं।
• बच्चों के बचपन का आनंद लें
बच्चों को हर वक्त सुधारने की बजाए उनके साथ रिश्ते को सुधारने की कोशिश करें। उनके साथ समय व्यतीत करें। आप बच्चों के बचपन को स्वीकार करेंl वह बच्चे हैं उन्हें बच्चा ही रहने दें।
आप खुश किस्मत हैं कि खुशियों की पोटली के रूप में एक बच्चा आपके घर में आया है। यदि आप ईमानदारी से अपने बच्चे की अच्छी परवरिश करना चाहते हैं तो सबसे पहले खुद को एक शांत और प्रेम से भरपूर इंसान बनाना होगा।
-नीलम हुंदल (दिल्ली कैंट)