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पुरुष ही नहीं महिला नागा साधुओं की दुनिया भी है काफी रहस्यमयी, खुद करती हैं अपना पिंडदान

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 17 Jan, 2023 05:55 PM
पुरुष ही नहीं महिला नागा साधुओं की दुनिया भी है काफी रहस्यमयी, खुद करती हैं अपना पिंडदान

नागा साधु बनने की राह आसान नहीं है। यह यात्रा जितनी कठिन है, उतनी ही रोमांचक भी है। साधु बनने से पहले सभी इच्छाओं का त्याग करना अनिवार्य होता है। नागा बनने से पहले ब्रह्मचर्य की परीक्षा देना अनिवर्य होता है। ब्रह्मचर्य के पालन के सिद्ध होने के बाद नवागत को महापुरुष का दर्जा दिया जाता है। पुरुष  नागा साधुओं के बारे में हमने कई बार सुना होगा लेकिन आज हम आपको महिला नागा साधुओं की रहस्यमय दुनिया के बारे में बताने जा रहे हैं।

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कई चुनौतियों से गुजरती हैं नागा साध्वी

हज़ारों साल पुरानी परंपराओं के हवाले से वर्तमान में इस प्रक्रिया के बारे में बताया जाता है कि अगर आपके भीतर संन्यासी जीवन की प्रबल इच्छा है तभी आप नागा साधु बन सकते हैं। हालांकि येबात बहुत कम लोग जानते हैं कि  महिलाएं भी नागा साधु बनती हैं। उनकी भी दुनिया पुरुष नागा साधुओं के जैसी ही होती हैं। उन्हें भी कई चुनौतियों से गुजरना पड़ता है।

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10 साल तक ली जाती है परीक्षा

नागा साध्वी बनने के लिए 10 साल तक पूर्ण ब्रह्मचार्य का पालन करना सबसे जरूरी काम होता है। अगर महिला ऐसा नहीं कर पाती है तो नागा साधु बनने का रास्ता बंद हो जाएगा।  ब्रह्मचार्य का पूरी तरह से पालन करने के बाद ही निर्णय लिया जाता है कि महिला को नागा साधु बनाया जाए या नहीं। इस बात का निर्णय महिला नागा साधु की गुरु करती है।

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खुद का करना होता है मुंडन

 महिला नागा संन्यासिन बनने से पहले अखाड़े के साधु-संत उस महिला के घर परिवार और उसके पिछले जन्म की जांच पड़ताल करते हैं। उसे भी यह साबित करना होता है कि वह अपने परिवार से दूर हो चुकी है और अब किसी भी बात का मोह नही है। महिला को भी नागा संन्यासिन बनने से पहले खुद का ही पिंड दान करना आवश्यक है, साथ ही खुद का मुंडन भी करना पड़ता है।

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 गेरुए रंग के कपड़े पहनती हैं नागा साध्वी

 महिला नागा सन्यासन पूरा दिन भगवान का जाप करती है और सुबह-सुबह जल्दी उठ कर शिवजी का जाप करती हैं। पुरुष नागा साधू और महिला नागा सन्यासन के बीच कपड़ो का फर्क होता है। महिला नागा सन्यासनें नग्न स्नान नहीं करती हैं, उन्हें कपड़े पहनने की छूट रहती है।महिला नागा साधुओं को अपने मस्तक पर एक तिलक लगाना होता है, उन्हें एक ही कपड़ा पहनने की अनुमति होती है, जो गेरुए रंग का होता है। जब महिला नागा संन्यासिन पूरी तरह से बन जाती है तो अखाड़े के सभी साधु-संत उस महिला को माता कह कर बुलाते हैं। 

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