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18 साल की उम्र में विधवा होने पर भी नहीं टूटा ललिता का हौसला, बन गई देश की पहली महिला इंजीनियर

  • Edited By Charanjeet Kaur,
  • Updated: 26 Nov, 2022 12:21 PM
18 साल की उम्र में विधवा होने पर भी नहीं टूटा ललिता का हौसला, बन गई देश की पहली महिला इंजीनियर

इंजीनियरिंग में आजकल पुरुष और महिलाएं दोनों ही करियर बना रहे हैं। लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था, अय्योलासोमायाजुला ललिता ने तब इंजीनिरिंग कॉलेज में एडमिशन लिया, जब वहां कोई लड़की दिखती ही नहीं थी । ललिता की शादी 15 साल की उम्र में हो गई थी, लेकिन कुछ ही समय बाद पति की मृत्यु हो गई। सारी जिंदगी उन्हें मुश्किल भरी लग रही थी। ऐसे में पिता की मदद से उन्होंने फिर पढ़ाई ही शुरू और देखते ही देखते बना गई देश की पहली महिला इंजीनियर। आईए नजर डालते हैं अय्योलासोमायाजुला ललिता के सफर पर।

ललिता का जीवन परिचय

ललिता का जन्म 27 अगस्त 1919 को चेन्नई में हुआ था। उनके पिता का नाम पप्पू सुब्बा राव था, जो पेशे से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर थे।वो अपने माता पिता की पांचवी संतान थी। जिसके बाद उनके दो छोटे भाई-बहन और थे। सात बच्चों के परिवार में लड़को को इंजीनियरिंग की पढ़ाई कराई गई और बेटियों को बुनियादी शिक्षा तक ही सीमित रखा गया। ललिता के तीनों भाई इंजिनियर थे।

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पति ने जल्दी छोड़ दिया था साथ

जब ललिता महज 15 साल की थीं, तो उनकी शादी कर दी गई। हालांकि शादी के समय वह मैट्रिक पास कर चुकी थीं। शादी के बाद उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया। जीवन में सब कुछ अच्छा चल रहा था लेकिन उनके पति की मौत ने ललिता को विधवा बना दिया। वह अपनी नन्ही से बेटी के साथ रहने लगीं और भविष्य के लिए चिंता करने लगीं। पिता ने बेटी ललिता के दर्द को समझा और उन्हें ससुराल से वापस मायके ले आए।

 

बेटी की जिंदगी संवारने के लिए की पढ़ाई

पति की मौत के बाद ललिता के जीवन का नया दौर आया। खुद की और बेटी की जिंदगी को संवारने के लिए उन्होनें दोबारा शिक्षा शुरू करने के बारे में सोचा। वह अपने पिता और भाईयों की तरह नौ से पांच बजे वाली नौकरी करना चाहती थीं। ताकि काम के साथ अपनी बेटी को भी वक्त दे सकें। इंजीनियरिंग का प्रभाव उनपर बचपन से ही पड़ चुका था, ऐसे में इंजिनियरिंग को अपना लक्ष्य बनाते हुए उन्होंने पढ़ाई शुरू की। उस दौरान लड़कियों के लिए इंजीनियरिंग काॅलेज में हाॅस्टल तक नहीं थे। दो और लड़कियों ने इंजीनियरिंग में दाखिला लिया और ललीता समेत तीनों ने हाॅस्टल में रहकर 1943 में अपनी डिग्री हासिल कर ली। इसी के साथ वह भारत की पहली महिला इंजीनियर बन गईं।

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ललिता का करियर

बाद में ललिता ने बिहार के जमालपुर में रेलवे वर्कशॉप में अप्रेंटिस की। फिर शिमला के सेंट्रल स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया में इंजीनियरिंग असिस्टेंट के पद पर कार्य किया। यूके में लंदन के इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स से ग्रेजुएट शिप एग्जाम भी दिया और अपने पिता के साथ रिसर्च कार्य में भी जुड़ीं।

कई जगहों पर काम करने के साथ ललिता भारत के सबसे बड़े भाखड़ा नांगल बांध के लिए जनरेटर प्रोजेक्ट का हिस्सा बनीं। यह उनके सबसे प्रसिद्ध कामों में से एक है। 1964 में पहले इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस आफ वुमन इंजीनियर एंड साइंटिस्ट कार्यक्रम के आयोजन में उन्हें आमंत्रित किया गया। 1979 में 60 साल की उम्र में उनका का निधन हो गया।


 

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