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मंगल पांडे: भारत के वीर पुत्र के नाम से कांपते थे अंग्रेज, डर से 10 दिन पहले ही दे दी फांसी

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 08 Apr, 2022 11:35 AM
मंगल पांडे: भारत के वीर पुत्र के नाम से कांपते थे अंग्रेज, डर से 10 दिन पहले ही दे दी फांसी

देश की आने वाली पीढ़ियां आजाद हवा में सांस ले सकें और उनका भविष्य सुरक्षित हो, इसके लिए देश के कई नौजवानों ने अपने वर्तमान की कुर्बानी दे दी। आठ अप्रैल का दिन इन्हीं को समर्पित है। 1857 में देश में आजादी की पहली चिंगारी सुलगाने वाले मंगल पांडे को आठ अप्रैल के दिन फांसी दे दी गई थी।

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इस दिन के साथ एक और घटना भी जुड़ी है। देश में धधकती आजादी की आंच पूरी दुनिया तक पहुंचाने के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त जैसे आजादी के परवानों ने आठ अप्रैल 1929 को दिल्ली के सेंट्रल एसेंबली हॉल में बम फेंका था। इस बम धमाके का मकसद किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं बल्कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की तरफ दुनिया का ध्यान आकृष्ट करना था।

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मंगल पांडेय की बात करें तो उन्होंने ही सबसे पहले  उन्होंने ही ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ क्रांति की शुरुआत की थी और 29 मार्च 1857 को बैरकपुर में अंग्रेजों पर हमला कर उन्हें घायल कर दिया था।  हालांकि वह पहले ईस्ट इंडिया कंपनी में एक सैनिक के तौर पर भर्ती हुए थे लेकिन ब्रिटिश अफसरों की भारतीयों के प्रति क्रूरता को देखकर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल लिया था। सिर्फ 22 साल की उम्र से ही ईस्ट इंडिया कंपनी में जुड़ गए पांडेय फौज में जाने के लिए उत्साहित रहते थे, लेकिन अकबरपुर ब्रिगेड में पहली नियुक्ति के कुछ ही साल बाद अंग्रेज़ी सेना से उनका दिल भर गया था

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मंगल पांडेय की फांसी के लिए 18 अप्रैल, 1857 का दिन तय किया गया था लेकिन बगावत और भड़कने के खतरे को देखकर अंग्रेज़ों ने उन्हें कुछ दिन पहले ही 7 अप्रैल को फांसी देना चाहा, लेकिन दे नहीं सके। बताया जाता है कि 7 अप्रैल तड़के बैरकपुर छावनी में पांडेय को फांसी देने के लिए दो जल्लादों को बुलाया गया था, लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि पांडेय को सूली पर चढ़ाना है तो उन्होंने फांसी देने से इनकार कर दिया।

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तब कलकत्ता  से चार जल्लाद बुलाए गए और पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में मंगल पांडे को फांसी दे दी गई।  भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को सम्मान देने के लिए भारत सरकार द्वारा उनके लिए 1984 में एक डाक टिकट जारी किया गया था।29 मार्च 1857 को मंगल पांडे ने दो ब्रिटिश अफसरों पर हमला किया, जिसके बाज उन पर मुकदमा चलाया गया। 6 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को कोर्ट मार्शल कर दिया गया और उन्हें 8 अप्रैल को फांसी दी गई। हालांकि कोर्ट ने फांसी देने की तारीख 18 अप्रैल 1857 तय की थी।

 

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