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महात्मा गांधी की पड़पोती को 3 करोड़ के धोखाधड़ी मामले में हुई 7 साल की जेल

  • Edited By Anu Malhotra,
  • Updated: 08 Jun, 2021 04:47 PM
महात्मा गांधी की पड़पोती को 3 करोड़ के धोखाधड़ी मामले में हुई 7 साल की जेल

सत्य और अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने जीवन में सभी को सत्य की राह पर चलना सिखाया है। लेकिन उनकी ही पड़पोती को एक धोखाधड़ी और जालसाजी मामले में सात साल जेल सुनाई गई हैं। दरअसल, महात्मा गांधी की 56 वर्षीय पड़पोती को डरबन की एक अदालत ने 60 लाख रुपए की धोखाधड़ी और जालसाजी मामले में सात साल जेल की सजा सुनाई है।
 

3 करोड़ के धोखाधड़ी मामले में फंसी सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की पड़पोती
आपकों बतां दें कि, कोर्ट ने सोमवार को आशीष लता रामगोबिन को दोषी करार दिया था। बता दें कि महात्मा गांधी की पड़पोती आशीष लता रामगोबिन पर एक व्यवसायी एसआर महाराज को धोखा देने का आरोप था। एसआर महाराज ने रामगोबिन को भारत से एक नॉन-एक्जिस्टिंग कनसाइमेंट के लिए आयात और सीमा शुल्क के कथित रूप से क्लियरेंस के लिए 6.2 मिलियन रेंड (3 करोड़ 22 लाख 84 हजार 460 भारतीय रुपए) दिए थे। इसके साथ महाराज को मुनाफे में हिस्सा देने का वादा भी किया गया था।

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महात्मा गांधी की पड़पोती हैं लता रामगोबिन-
बतां दें कि लता रामगोबिन फेमस राइट एक्टिविस्ट इला गांधी और दिवंगत मेवा रामगोबिंद की बेटी हैं। उन्हें डरबन स्पेशलाइज्ड कमर्शियल क्राइम कोर्ट द्वारा दोषसिद्धि और सजा दोनों के खिलाफ अपील करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था।
 

2015 में 50,000 रेंड के मुचलके पर मिली थी बेल-
बतां दें कि लता रामगोबिन के खिलाफ 2015 में मामले की सुनवाई शुरू हुई थी।  राष्ट्रीय अभियोजन प्राधिकरण (एनपीए) के ब्रिगेडियर हंगवानी मुलौदज़ी ने कहा था कि रामगोबिन ने संभावित निवेशकों को यह समझाने के लिए कथित रूप से जाली चालान और दस्तावेज प्रदान किए थे कि भारत से लिनन के तीन कंटेनर भेजे जा रहे हैं। उस समय लता रामगोबिन को 50,000 रेंड के मुचलके पर बेल मिल गई थी। 
 

जाली दस्तावेज़ दिखा कर ऐसे की धोखाधड़ी-
एनपीए की प्रवक्ता नताशा कारा ने इश बारे में जानारी देते हुए बताया कि, लता रामगोबिन ने कहा था कि उसे इंपोर्ट कॉस्ट और सीमा शुल्क का भुगतान करने के लिए आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ रहा था और उसे बंदरगाह पर सामान खाली करने के लिए पैसे की जरूरत थी। रामगोबिन ने महाराज से कहा कि उसे 62 लाख रुपए की जरूरत है। महाराज के सामने अपनी बात साबित करन के लिए उसने उन्हें परचेज ऑर्डर भी दिखाया, इसके बाद रामगोबिन ने महाराज को कुछ और दस्तावेज भी दिए जो नेटकेयर चालान और डिलिवरी नोट जैसे थे। इससे ऐसा लग रहा था कि माल डिलीवर किया गया था और पेमेंट जल्द ही किया जाना था। 

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नताशा कारा के अनुसार, लता रामगोबिन ने उन्हें नेटकेयर के बैंक खाते से पुष्टि भेजी कि भुगतान किया जा चुका है। इसके बाद रामगोबिन की फैमिलि क्रेडेंशियल और नेटकेयर डॉक्यूमेंट्स को देखते हुए महाराज ने लोन के लिए उनके साथ एक लिखित समझौता किया था। हालांकि, जब महाराज को पता चला कि दस्तावेज़ जाली थे और नेटकेयर का लता रामगोबिन के साथ कोई समझौता नहीं था, तो उन्होंने कोर्ट का रूख किया, जिसके बाद सुनवाई में लता रामगोबिन को सात साल की जेल की सजा सुनाई। 

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