बकरीद मुसलमानों का मुख्य और पवित्र त्योहार माना जाता है। यह मीठी ईद के लगभग 2 महीने के बाद मनाई जाती है। इसे ईद-उल-अजहा भी कहा जाता है। वैसे तो यह त्योहार इस साल सभी जगहों पर 31 जुलाई को सेलिब्रेट किया जाएगा। मगर भारत देश में इस बार बकरीद 31 जुलाई की जगह 1 अगस्त को मनाई जा सकती है। असल में ईद की तारीख चांद को देखने पर ही निश्चित की जाती है।
बकरीद मनाने का महत्व
मुसलमानों के द्वारा मनाई जाने वाली बकरीद का त्यौहार कुर्बानी के तौर पर मनाया जाता हैं। इस पावन दिन पर लोग नमाज पढ़ने के बाद बकरे की कुर्बानी देते हैं। इस्लामिक धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक पैगंबर हजरत इब्राहिम ने बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा शुरु की थी। कहते है है कि इब्राहिम अलैय सलाम नि:संतान थे। उनके द्वारा अल्लाह की कई इबादतें करने के बाद उनके यहां एक पुत्र हुआ। उस बेटे का नाम इब्राहिम अलैय ने इस्माइल रखा था। वे अपने बेटे को जी जान से चाहते थे। मगर एक रात को अल्लाह इब्राहिम के सपने में आए। उन्होंने उनसे उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी देने को कहा। ऐसे में अल्लाह के आदेश का पालन करते हुए इब्राहिम ने एक- एक करके अपने सभी प्यारे जानवरों की कुर्बानी दे दी। मगर अल्लाह दोबारा इब्राहिम के सपने में आए और उनसे उनकी सबसे प्यारी व अनमोल चीज की कुर्बानी के बारे में कहने लगे।
इब्राहिम को अपना एकलौते बेटा इस्माइल सबसे ज्यादा प्यारा था। मगर फिर भी अल्लाह के आदेश को सबसे आगे रखते हुए उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया। मगर वे अपने सामने अपने बेटे को मरता नहीं देख सकते थे। इसलिए बेटे की कुर्बानी देते समय उन्होंने अपनी आंखों को पट्टी बांधकर ढक लिया। मगर बेटे की कुर्बानी देने के बाद जब इब्राहिम ने अपने आंखों से पट्टी उतारी तो उन्होंने अपने बेचे को अपने सामने जीवित व सही सलामत पाया। बच्चे को बिल्कुल स्वस्थ व जिंदा देखकर इब्राहिम बहुत खुश हुए। माना जाता है कि उस समय अल्लाह ने इब्राहिम की उनके प्रति आस्था व निष्ठा देखकर कुर्बानी देते समय उस स्थान पर उनके बेट की जगह बकरे को रख दिया था। उसी दिन से ही बकरीद पर बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हो गई और आज तक चल रही है। इस खास दिन को लोग इब्राहिम अलैय सलाम द्वारा दी गई कुर्बानी को याद कर बकरों की कुर्बानी देकर ईद को मनाते है। साथ ही एक-दूसरों को मिठाई खिलाकर बधाई देते हैं।