
नारी डेस्क: मेनोपॉज़ केवल शारीरिक बदलाव का दौर नहीं है, बल्कि यह एक गहरे मानसिक और भावनात्मक संमण का समय भी है। महिलाएं इस दौरान न केवल हार्मोनल उतार-चढ़ाव से जुझती हैं बल्कि पहचान, आत्मविश्वास और सामाजिक भूमिका से जुड़ी कई भावनात्मक चुनौतियां भी महसूस कर सकती हैं। मेनोवेदा की को-फाउंडर (Menoveda Co-founder) और मेनोपॉज कोच तमन्ना सिंह (Menopause Coach Tamanna Singh) ने मेनोपोज के दौरान मानसिक व्यवहार और भावनात्मक संतुलन से जुड़ी विशेष जानकारी नारी पंजाबकेसरी पर साझा की हैं, हर महिला का इस बारे में जानकारी होना जरूरी है ताकि वह खुद को हैल्दी रख सके।
मानसिक लक्षणो में शामिल हैं
चिड़चिड़ापन और मूड स्विंग्स
चिंता और अवसाद
थकान और मानसिक धुंध (brain fog)
अकेलापन और आम-संशय

इसके पीछे कारण क्या हैं?
एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन मात्रा मस्तिष्क के न्यूरोट्रांसमीटर पर असर डालती हैं
नींद की कमी से दिमाग थका हुआ और असंतुलित महसूस करता है
सामाजिक अपेक्षाएं और उनका दबाव
क्या करें इस दौर में?
मनोवैज्ञानिक सपोर्ट लें: थेरेपी, मेंटल हेल्थ कोचिंग या समूह चर्चा
आयुर्वेदिक सहयोग: शतावरी, मुद्गपर्णी और शंखपुष्पी जैसी जड़ी-बूटियाँ मानसिक पटुता और शांति देती हैं
रोज़मर्रा की गतिविधियां: नई हॉबी अपनाना, किताब पढ़ना, संगीत सुनना
रूटीन बनाना: हर दिन एक निश्चित दिनचर्या, सोने-जागने का समय तय करना
बात करें: अपने प्रियजनों से खुलकर बात करें, अकेलेपन को न पालें

मेनोपॉज़ में मानसिक व्यवहार की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। यह आम-जागरूकता, आम-स्वीकृति और आमबल की यात्रा है जहां हर महिला खुद को फिर से जानती और समझती है।