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हाई कोर्ट का बड़ा फैसला: LGBTQ कपल शादी नहीं कर सकते, पर परिवार बनाने का अधिकार

  • Edited By Priya Yadav,
  • Updated: 05 Jun, 2025 10:14 AM
हाई कोर्ट का बड़ा फैसला: LGBTQ कपल शादी नहीं कर सकते, पर परिवार बनाने का अधिकार

नारी डेस्क: हाल ही में मद्रास हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें कहा गया है कि भले ही भारत में समलैंगिक शादी (Same-Sex Marriage) को कानूनी मान्यता नहीं मिली है, लेकिन एलजीबीटीक्यूIA+ समुदाय के लोगों को परिवार बनाने का पूरा अधिकार है।

यह फैसला 25 साल की एक लेस्बियन महिला के केस में दिया गया है, जिसे उसके परिवार वालों ने उसकी महिला पार्टनर से जबरदस्ती अलग कर दिया था और परेशान कर रहे थे। महिला की पार्टनर ने मद्रास हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (Habeas Corpus) दायर की थी।

कोर्ट का क्या कहना है?

22 मई को जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन और जस्टिस वी. लक्ष्मीनारायणन की बेंच ने ये फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा: परिवार सिर्फ शादी से नहीं बनता। 'चुने हुए परिवार' (Chosen Family) की अवधारणा अब कानून में मान्य है। यानी दो लोग आपसी सहमति से बिना शादी किए भी एक परिवार की तरह साथ रह सकते हैं। LGBTQIA+ लोग भी अपनी मर्जी से अपना परिवार बना सकते हैं, भले ही वे शादी नहीं कर सकते।

कोर्ट ने क्यों रिहा किया महिला को?

25 साल की एक महिला को उसके परिवार ने जबरन उसके पार्टनर से अलग कर दिया था और घर में बंद कर दिया था। महिला की पार्टनर ने कोर्ट में याचिका देकर कहा कि उसकी प्रेमिका को गैरकानूनी तरीके से घर में कैद कर रखा गया है। कोर्ट ने माना कि महिला बालिग है और अपनी जिंदगी के फैसले खुद ले सकती है। इसलिए कोर्ट ने महिला को तुरंत रिहा करने और उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश दिया।

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जस्टिस लीला सेठ का उदाहरण

कोर्ट ने भारत की पहली महिला चीफ जस्टिसों में से एक जस्टिस लीला सेठ का उदाहरण दिया। उन्होंने अपने बेटे की समलैंगिक पहचान को समझा और खुले दिल से स्वीकार किया था। जजों ने कहा, "हर माता-पिता लीला सेठ जैसे नहीं होते। महिला की मां चाहती थीं कि वह 'सामान्य' जिंदगी जीए, शादी करे और बस जाए। हमने उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं मानीं।"

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"क्वीर" शब्द पर आपत्ति

कोर्ट ने “क्वीर” शब्द पर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि इस शब्द का मतलब आमतौर पर “अजीब” या “गैर-सामान्य” होता है, जो LGBTQIA+ लोगों के लिए सही नहीं है। जजों ने कहा, “अगर किसी का यौन रुझान उसके लिए सामान्य है, तो उसे अजीब क्यों कहा जाए? हमें ऐसे शब्दों से बचना चाहिए।”

पुलिस की लापरवाही पर नाराज़गी

कोर्ट ने पुलिस की कार्यशैली पर भी कड़ी टिप्पणी की। पुलिस ने महिला को उसकी मर्जी के खिलाफ उसके माता-पिता को सौंप दिया। कोर्ट ने कहा, “पुलिस ने इस मामले में असंवेदनशीलता दिखाई है। LGBTQIA+ समुदाय से जुड़ी शिकायतों पर उन्हें संवेदनशील और जल्दी एक्शन लेना चाहिए।”

कोर्ट के आदेश

महिला और उसकी पार्टनर को सुरक्षा दी जाए। परिवार को महिला की जिंदगी में दखल देने से रोका जाए। पुलिस LGBTQIA+ मामलों में संवेदनशीलता से काम करे।

मद्रास हाई कोर्ट का यह फैसला LGBTQIA+ समुदाय के अधिकारों के लिए एक बड़ी जीत है। कोर्ट ने साफ कहा कि हर व्यक्ति को अपने जीवन के फैसले लेने का अधिकार है, चाहे उसकी पहचान या यौन रुझान कुछ भी हो। यह फैसला समाज में स्वीकार्यता बढ़ाने और पुलिस/सरकारी तंत्र को संवेदनशील बनाने की दिशा में एक अहम कदम है।  

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