साड़ी का नाम आते ही दिमाग में "भारतीय नारी" का पूरा व्यक्तित्व आंखों के सामने आ जाता है। भारतीय पारंपरिक परिधान की पहचान "साड़ी" विश्व की सबसे लंबे व पुराने परिधानों में से एक है। मगर, क्या आपने कभी गौर किया है कि आखिर महिलाएं बाएं कंधे पर ही साड़ी का पल्लू क्यों बांधती हैं?
पहले के समय में महिलाएं दाहिने कंधे पर पल्लू रखतीं थी लेकिन इसके कारण उन्हें काम करने में दिक्कत होती थी। ऐसे में ज्ञानदानंदिनी देवी ने आइडिया निकाला कि क्यों न पल्लू बाएं कंधे पर लिया जाए। फिर क्या... ज्ञानदानंदिनी देवी ने पल्लू को बाएं कंधे पर रखने की शुरुआत की और महिलाओं का काम आसान बना दिया। यही नहीं, उन्होंने ही विक्टोरियन सभ्यता से साम्य स्थापित करने के लिए साड़ी के साथ ब्लाउज और पेटीकोट पहनने का ट्रैंड शुरू किया।
चलिए आपको बताते कि आखिर कौन थी महिलाओं को उल्टे पल्लू की साड़ी पहनना सिखाने वाली ज्ञानदानंदिनी देवी....
समाज सुधारक ज्ञानदानंदिनी देवी गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के बड़े भाई और देश के पहले ICS अफसर सत्येंद्रनाथ टैगोर की पत्नी थी। हालांकि अगर उन्हें भारत में सबसे ज्यादा समाजिक बदलाव लाने वाली महिला कहा जाए तो गलत नहीं होगा। उन्होंने ही विभिन्न सांस्कृतिक नवाचारों को दूर करने का बीड़ा उठाया और बंगाल में महिला सशक्तिकरण की नई पहन शुरू की।
8 साल की उम्र में हुई शादी
ज्ञानदानंदिनी देवी 7-8 साल की उम्र में ही टैगोर परिवार की बहू बन गई। उस समय बंगाली परिवार में महिलाओं को बाहर जाने की अनुमति नहीं था और ना ही ऐसे वस्त्र पहनने की जिसमें शरीर का कोई भी अंग दिखाई। जब वह 14 साल की हुई तो उनके पति सत्येंद्रनाथ टैगोर ने ज्ञानदानंदिनी देवी को लंदन भेजने की सोची लेकिन उनके पिता ने सहमति नहीं दी।
शुरू किया ब्रह्मिका साड़ी का ट्रेंड
मगर, फिर ज्ञानदानंदिनी के बहनोई हेमेंद्रनाथ टैगोर ने उन्हें शिक्षा देनी शुरू की। सत्येंद्रनाथ के इंग्लैंड से लौटने पर ज्ञानदानंदिनी अपने पति के साथ बंबई में रहने चली गईं। बंबई में रहते हुए उन्होंने दूसरी दुनिया देखी। वहां, उन्होंने पारसी, अंग्रेजी रीति-रिवाजों को समझना शुरू किया और खुद को उनमें ढालना चाहा। मगर, इसके लिए उन्हें उचित पोशाक की जरूरत थी। फिर ज्ञानदानंदिनी ने पारसी महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली साड़ी में सुधार किया और बाएं कंधे पर साड़ी पहनने का टैंड्र चलाया। बता दें कि ब्लाउज व पेटीकोट अंग्रेजी शब्द है, जिसे उन्होंने साड़ी के साथ जोड़कर नया रूप दिया। धीरे-धीरे उनकी यह शैली कलकत्ता की ब्रह्मो महिलाओं में मशहूर हो गई, जिसका नाम ब्रह्मिका साड़ी पड़ गया।
तोड़े कई रीति-रिवाज और...
कलकत्ता में रहते हुए ज्ञानदानंदिनी ने उच्च जाति के रीति-रिवाजों को तोड़ते हुए, क्रिसमस पार्टी में अपने पति के साथ गई। हालांकि कई लोगों व उनके ससुर, देबेंद्रनाथ टैगोर ने भी उनकी स्वतंत्र भावना को नहीं अपनाया। इसके कारण वो महल छोड़ देवेंद्रनाथ के निवास के साथ वाले में पार्क स्ट्रीट पर एक हवेली में अकेले रहने के लगी। मगर, फिर वह पति के बाद बंबई लौट आई और 1872 में उन्होंने पहले बच्चे को जन्म दिया। हालांकि इससे पहले वह अपना एक बच्चा खो चुकी थीं।
इंग्लैंड से सीखी बहुत-सी चीजें
ज्ञानदानंदिनी ने एक और साहस दिखाते हुए मुस्लिम महिला को अपने बच्चों के लिए वेट नर्स के रूप में नियुक्त किया। तीन बच्चों के बाद वह फिर से गर्भवती हुई लेकिन उस दौरान उनका अपने पति से झगड़ा हो गया। ऐसे में वह अपने 3 बच्चों सहित गर्भावस्था में हवाई जहाज पकड़ इंग्लैंड चली गई। उनके इस कदम ने सामाजिक सनसनी पैदा कर दी। वहां उन्होंने बहुत-सी चीजें सीखीं और कुछ समय बाद कोलकत्ता लौट आईं।
भारत में शुरू किया टी-पार्टी व बर्थ-डे का कॉन्सेप्ट
वापिस आकर उन्होंने भारतीय महिलाओं को भी अंग्रेजी फैशन से जोड़ना शुरू किया। उन्होंने साड़ी के साथ ओवरकोट, समीज, जैकेट, पेटीकोज, ब्लाउज और बहुत से चीजों को कम्बाइन किया। यही नहीं, उन्होंने सलवार कमीज पहनकर घर से निकलना शुरू किया, जो उस समय भारत में टैबू था। बता दें कि भारत में ब्रिटिश टी-पार्टी (किटी पार्टी) व बर्थ-डे का कॉन्सेप्ट शुरू करने वाली भी ज्ञानदानंदिनी देवी ही थीं।
1911 में, ज्ञानदानंदिनी और सत्येंद्रनाथ रांची के मोराबादी हिल में स्थायी रूप से रहने लगे और 1941 में उनकी मृत्यु हो गई।