बेटी शब्द में पूरी कायनात समाई है। पिता का ख्वाब तो बेटी मां की भी परछाई है। बेटियां न हों तो यह संसार ही थम जाएगा। अगर यह कहा जाए कि बेटी के बिना इस सृष्टि कि कल्पना नहीं कि जा सकती तो गलत न होगा। अगर इतिहास से लेकर वर्तमान समय कि बात कि जाए तो समूची मानवता के विकास में बेटियों का योगदान अभूतपूर्व रहा है। कोई भी प्रोफैशन हो, हर जगह बेटियों ने अपनी अलग पहचान बनाई है और अपनी प्रतिभा का परिचय देकर अद्भुत छाप छोड़ी है।
चाहे बेटियों को लेकर समाज की सोच में बदलाव आया है, पर अभी भी एक वर्ग ऐसा है जो बेटियों को बेटों से कमतर आंकता है। ऐसे वर्ग की सोच ने ही कन्या भ्रूण हत्या जैसी बुराई को इस युग में भी कायम रखा हुआ है। इसी कारण लिंग अनुपात में भी भारी गिरावट आई है, जो हमारे सामने एक बड़ी चुनौती है। समाज के ऐसे वर्ग को जागरूक करने के लिए पहले इस सोच को बढ़ावा देने की जरूरत है कि बेटियां भी समाज में उतनी ही अहम भूमिका निभाती हैं, जितनी कि बेटे।
दूसरा, यह सोच विकसित की जाए कि अगर लड़कियां ही न हों तो वंश कैसे आगे बढ़ेगा और इस सृष्टि का चक्कर ही खत्म हो जाएगा। तीसरा, जो यह सोचते हैं कि बेटियों का कोई घर नहीं होता, वे गलत हैं। असल में सच्चाई तो यह है कि बेटियां हैं तो घर होता है। अगर पिता के घर में बेटी मेहमान है तो ससुराल के घर की पहचान है।
बेटियां अपने परिवार की कभी भी उपेक्षा नहीं करतीं और यही बात उन्हें बेटों से अलग करती है। प्यार, त्याग और भावनाओं की मूरत, बेटी हमेशा परिवार को एक सूत्र में बांध कर रखने के लिए यत्नशील रहती है। आज जरूरत है समाज की हर बेटी को शिक्षित कर आत्मनिर्भर बनाने की और यह तभी संभव है जब बेटियों के प्रति समाज के हर वर्ग की सोच सकारात्मक हो, परिवार का हर सदस्य उसी चाव से नवजात बेटी का घर में स्वागत करे, जो चाव वे एक बेटे के स्वागत के लिए दिखाते हैं।