नारी डेस्क: इस मॉडर्न जमाने में बहुत से बच्चों को यह मालूम नहीं है कि भगवद्गीता और रामायण क्या है। अगर आप नहीं चाहते हैं कि आगे चलकर आपके बच्चे भी ऐसे ही सवाल करें तो उन्हे श्रीमद भागवत गीता के बारे में समझाएं और इसके अनमोल वचन उन्हें जरूर सुनाएं। भगवद्गीता बच्चों को न केवल धर्म और संस्कृति का ज्ञान देती है, बल्कि उनके व्यक्तित्व, विचार, और जीवन के प्रति दृष्टिकोण को सकारात्मक रूप से विकसित करती है। इसे बच्चों की उम्र और समझ के अनुसार सरल और रोचक तरीके से प्रस्तुत करना चाहिए।
कब दे बच्चों को भगवद्गीता की जानकारी
6-10 साल की उम्र: इस उम्र में बच्चे कहानियों और सरल विचारों को आसानी से समझ सकते हैं। गीता के श्लोक और उनके अर्थ को कहानियों के माध्यम से समझाना सबसे अच्छा तरीका है।
11-15 साल की उम्र: इस उम्र में बच्चे तर्क और गहरे विचारों को समझने लगते हैं। गीता के श्लोकों का व्यावहारिक जीवन से जुड़ाव समझाना प्रभावी होगा।
16 साल और उससे अधिक: किशोरावस्था और युवावस्था में गीता के दार्शनिक पहलुओं और जीवन की गहरी सच्चाइयों को साझा करना प्रभावी रहेगा।
बच्चों को भगवद्गीता से परिचित कराने के तरीके
भगवद्गीता का परिचय महाभारत की कहानियों से दें। अर्जुन और भगवान श्रीकृष्ण के संवाद को नैतिकता और जीवन के सबक के रूप में प्रस्तुत करें। उदाहरण: अर्जुन का कर्तव्य और संकोच की कहानी। उन्हें सरल भाषा में श्लोक सिखाएं, समझाएं कि हमें अपने काम पर ध्यान देना चाहिए, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। श्लोकों का अर्थ खेल या चित्रों के माध्यम से समझाएं। रोजमर्रा की जिंदगी की छोटी-छोटी घटनाओं के माध्यम से गीता के सिद्धांत समझाएं। जैसे- "सच्चाई का महत्व," "सहनशीलता," और "दूसरों की मदद करना।"
गीता को मनोरंजक बनाएं
बच्चों के लिए गीता के कार्टून या एनिमेटेड वीडियो दिखाएं। रंगीन चित्रों और सरल शब्दों वाली किताबें पढ़ाएं। परिवार के साथ गीता के कुछ श्लोकों का जाप करें। गीता के अनुसार नैतिक मूल्यों का पालन करने के लिए प्रेरित करें।
बच्चों के सवालों का उत्तर दें
बच्चे गीता से संबंधित प्रश्न पूछ सकते हैं। उनके सवालों का उत्तर धैर्य और सरलता से दें। उदाहरण: भगवान कृष्ण ने अर्जुन को क्या सिखाया? कर्मयोग का मतलब क्या है? गीता के योग और ध्यान के सिद्धांतों को बच्चों की दिनचर्या में शामिल करें। ध्यान और शांत समय उनके मन को स्थिर और एकाग्र बनाने में मदद करेगा।
बच्चों को धर्म का ज्ञान देने का सही समय
शुरुआती उम्र (3-5 साल): सरल कहानियों और नैतिक मूल्यों से शुरुआत करें।
6-10 साल: धार्मिक ग्रंथों और उनकी शिक्षाओं का परिचय दें।
किशोरावस्था (11-15 साल): तर्क और गहरी शिक्षाओं को समझाने पर ध्यान दें।
युवावस्था: - धर्म को जीवन के व्यावहारिक पहलुओं से जोड़कर समझाएं।
भगवद्गीता से बच्चों को क्या सिखाया जा सकता है?
- अपने काम को निष्ठा और ईमानदारी से करना।
- सच बोलने और सही कार्य करने का महत्व।
- मुश्किल समय में शांत और धैर्यवान रहना।
- अपने मन और इंद्रियों पर नियंत्रण रखना।
- सभी के साथ समान व्यवहार करना।
बच्चों को भगवद्गीता सिखाने का उद्देश्य केवल धार्मिक ज्ञान देना नहीं, बल्कि उनके जीवन को नैतिकता, सकारात्मकता, और आत्म-विकास के पथ पर ले जाना है। इसे सरल, रोचक, और व्यावहारिक तरीके से प्रस्तुत करें ताकि बच्चे इसे आसानी से समझ सकें और जीवन में अपनाएं।