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Nari

क्या आपने भी की है कभी टॉय ट्रेन की सवारी? (Pics)

  • Updated: 24 Aug, 2016 01:40 PM
क्या आपने भी की है कभी टॉय ट्रेन की सवारी? (Pics)

घूमना-फिरना सभी को पसंद होता है। छुट्टियां होने से पहले ही कहां घूमने जाना है इसकी प्लानिंग शुरू हो जाती है। खूबसूरत वादियों में कभी घने जंगल, तो कभी टनल और चाय के बगानों के बीच से होकर गुजरती टॉय ट्रेन की यात्रा आज भी लोगों को खूब रोमांचित करती है। अगर आप फैमिली के साथ किसी ऐसी ही यात्रा पर जाने का सोच रहे है तो विश्व धरोहर में शामिल शिमला, ऊटी, माथेरन, दार्जिलिंग के टॉय ट्रेन से बेहतर और क्या हो सकता है? आइए जानें इन जगहों के बारे में...

 

 

- कालका-शिमला टॉय ट्रेन

 

कालका-शिमला टॉय ट्रेन को वर्ष 2008 में यूनेस्को ने वल्र्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिया था।इसका सफर 9 नवंबर, 1903 को शुरू हुआ था। कालका के बाद ट्रेन शिवालिक की पहाड़ियों के घुमावदार रास्तों से होते हुए करीब 2076 मीटर की ऊंचाई पर स्थित खूबसूरत हिल स्टेशन शिमला पहुंचती है। यह 2 फीट छह इंच की नैरो गेज लेन पर चलती है। शिमला रेलवे स्टेशन है तो छोटा लेकिन बहुत सुंदर स्टेशन है। यहां से एक तरफ शिमला शहर और दूसरी तरफ घाटियों और पहाड़ियों के खूबसूरत नजारे देखे जा सकते हैं।

 

 

- दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे

 

दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे (टॉय ट्रेन) को यूनेस्को ने दिसंबर 1999 में वल्र्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिया था। यह न्यू जलापाईगुड़ी से दार्जिलिंग के बीच चलती है। शहर के बीचों-बीच से गुजरती यह रेल गाड़ी लहराती हुई चाय बागानों के बीच से होकर हरियाली से भरे जंगलों को पार करती हुई, पहाड़ों में बसे छोटे -छोटे गांवों से होती हुई आगे बढ़ती है।  इसकी रफ्तार भी काफी कम होती है। 

 

दार्जिलिंग से थोड़ा पहले घुम स्टेशन है, जो भारत के सबसे ऊंचाई पर स्थित रेलवे स्टेशन है। यह करीब 7407 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से आगे चलकर बतासिया लूप आता है। यहां एक शहीद स्मारक है. यहां से पूरे दार्जिलिंग का खूबसूरत नजारा दिखाई देता है।

 

 

- नीलगिरि माउंटेन रेलवे

 

दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे की तरह नीलगिरि माउंटेन रेल भी एक वल्र्ड हेरिटेज साइट है। इसी टॉय ट्रेन पर मशूहर फिल्म ‘दिल से’ के ‘ चल छइयां-छइयां’ गाने की शूटिंग हुई थी। आपको जानकर थोड़ी हैरानी भी हो सकती है कि मेट्टुपालियम-ऊटी नीलगिरि पैसेंजर ट्रेन भारत में चलने वाली सबसे धीमी ट्रेन है। पहाड़ों को काट कर बनाए गए इस रेल मार्ग पर 1899 में मेट्टुपालियम से कन्नूर तक ट्रेन की शुरुआत हुई। जून 1908 इस मार्ग का विस्तार उदगमंदलम यानी ऊटी तक किया गया। देश की आजादी के बाद 1951 में यह रेल मार्ग दक्षिण रेलवे का हिस्सा बना। आज भी इस टॉय ट्रेन का सुहाना सफर जारी है।

 

 

- नरेल-माथेरान टॉय ट्रेन

 

माथेरान छोटा एक अद्भुत हिल स्टेशन है। यह करीब 2650 फीट की ऊंचाई पर है। नरेल से माथेरान के बीच टॉय ट्रेन के जरिए हिल टॉप की जर्नी काफी रोमांचक होती है। इस रेल मार्ग पर करीब 121 छोटे-छोटे पुल और करीब 221 मोड़ आते हैं। इस मार्ग पर चलने वाली ट्रेनों की स्पीड 20 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा नहीं होती है। 

 

माथेरान रेल की शुरुआत 1907 में हुई थी। बारिश के मौसम में एहतियात के तौर पर इस रेल मार्ग को बंद कर दिया जाता है। माथेरन का प्राकृतिक नजारा बॉलीवुड के निर्माताओं को हमेशा से आकर्षित करता रहा है।

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