महिलाएं आज किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है। मैडल लाने से लेकर देश की सुरक्षा करने तक हर क्षेत्र में वह अपनी कामयाबी का परचम लहराती हुई नजर आ रही हैं। ऐसी कई महिलाएं हैं जो अपनी काबिलियत के जरिए आज काफी अच्छा मुकाम हासिल कर चुकी हैं उन्हीं महिलाओं में से एक हैं इंदु मल्हौत्रा। इंदु मल्हौत्रा वकील से सीधे सुप्रीम कोर्ट की जज बनी थी। वह पहली ऐसी महिला अधिवक्ता थी जो वकील से सीधे सुप्रीम कोर्ट की जज बनी थी। लेकिन उन्होंने यह मुकाम कैसे हासिल किया आज आपको इस बारे में बताएंगे। आइए जानते हैं।
बैंगलुरु में हुआ था जन्म
इंदु मल्हौत्रा का जन्म 14 मार्च 1956 को कर्नाटक के बैंगलुरु में हुआ था। उनके पिता का नाम ओमप्रकाश मल्हौत्रा और मां का नाम सत्य मल्हौत्रा है। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा बैंगलुरु में ही की थी। इसके बाद वह दिल्ली के कार्मल कॉन्वेंट स्कूल में से पढ़ाई पूरी की। फिर उन्होंने लेडी श्रीराम कॉलेज दिल्ली से ग्रेजुएशन किया था। ग्रेजुएशन के दौरान उन्होंने राजनीति शास्त्र में डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने पॉलिटिकल साइंस में मास्टर्स भी की है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के मिरांडा हाउस और विवेकानंद कॉलेज में वह शिक्षण कार्य भी किया। 1979 से 1982 के दौरान उन्होंने डीयू के फैकल्टी ऑफ लॉ से लॉ की पढ़ाई की और इसके बाद वह 1983 में वह वकालत के पेशे में आई थी।
एडवोकेट की परीक्षा में किया था टॉप
पांच साल के अंदर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में वकालत के लिए 1988 में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड परीक्षा दी थी। इस परीक्षा में उन्होंने टॉप भी किया इसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने लगी। साल 2007 में उन्हें सीनियर वकील का दर्जा मिला। वह कई वैधानिक निकायों में भी काम कर चुकी हैं। इसके अलावा वह द लॉ एंड प्रैक्टिस ऑफ आर्बिटेशन इन इंडिया नाम की पुस्तक की सह लेखिका भी है। कई घरेलू और विदेशी कानून विवादों को भी वह सुलझा चुकी हैं। 1988 में उन्हें मुकेश गोस्वामी मेमोरियल अवॉर्ड से भी नवाजी चा चुकी हैं।
2018 में बनी ती सुप्रीम कोर्ट की जज
इंदु को 27 अप्रैल 2018 को राष्ट्रपति कोविंद ने सुप्रीम कोर्ट की जज के तौर पर नियुक्त किया था। तीन साल तक जज के तौर पर अपनी सेवा देने के बाद वह मार्च 2021 में इस पद से रिटायर हो गई थी।
सबरीमाला मामले पर भी दे चुकी हैं सुनवाई
इंदु मल्हौत्रा अपने वकालत करियर के दौरान खूब चर्चा में रही हैं। उन्होंने केरल के सबरीमाला मंदिर मामले को भी जज किया था। इस दौरान उन्होंने पुरुषों जजों से अपनी अलग राय रखी थी। इस मामले में पुरुष न्यायधीशों से महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश देने की बात कही थी वहीं इंदु ने इसके खिलाफ अपना पक्ष सबके सामने रखा था।
समलैंगिक संबंधों पर भी दे चुकी हैं फैसला
सबरीमाला मंदिर के अलावा वह समलैंगिक यौन संबंध मामले में भी फैसला दे चुकी हैं। इंदु इस मामले की पीठ का हिस्सा थी। शीर्ष अदालत ने उस दौरान आपसी सहमति से दो व्यस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में से हटा दिया था। इसके अलावा वह व्यभिचार को अपराध की श्रेणी में रखने वाली आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक ठहराने और उसे खत्म करने वाली पीठ का भी हिस्सा रह चुकी हैं।