वैसे तो हिमाचल प्रदेश हर कोई कभी न कभी तो घूमने गया ही होगा। लेकिन क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि यहां पर प्लेन की सुविधा नहीं है। ट्रेन की भी कालका तक जाती है। आगे का सफर बस में ही तय करना पड़ता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हिमालय के ऊपर से उड़ान नहीं भरी जा सकती है। आप इसके ऊपर से सफर नहीं कर सकते हैं। दरअसल, इस विशायकाय पर्वत के ऊपर से किसी भी यात्री विमान के लिए कोई रुट निर्धारित नहीं किया गया है। अब जरूर आप इसके पीछे का कारण भी जानना चाहेंगे। लेकिन इसके पीछे एक नहीं, कई सारे कारण है। आइए आपको बताते हैं इसके बारे में...
मौसम है पहला कारण
हिमालय के ऊपर मौसम हमेशा बदलता रहता है और काफी खराब भी हो जाता है। विमानों की उड़ान के लिए यहां का मौसम बिल्कुल भी सही नहीं है। यहां का लगातार बदलता मौसम विमानों के लिए काफी खतरनाक हो सकता है। विमान में यात्रियों के हिसाब से एयर प्रेशर रखा जाता है। लेकिन हिमालय में हवा की स्थिति काफी असामान्य रहती है जो यात्रियों को भारी नुकसान पहुंचा सकती है। इसलिए इसके ऊपर से कोई भी रूट नहीं रखा गया है।
इसकी ऊंचाई सबसे बड़ा कारण
इसके ऊपर से हवाई जहाजों के न उड़ने का सबसे बड़ा कारण इसकी ऊंचाई है। हिमालय पर्वत की ऊंचाई लगभग 29 हजार फीट है। वहीं, हवाई जहाज औसतन 30 से 35 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरते है। लेकिन हिमालय की ऊंचाई विमानों के लिए खतरनाक है। दरअसल, आपातकाल के दौरान विमान में 20-25 मिनट की ही ऑक्सीजन होती है, आपातकाल की स्थिति में प्लेन को 8-10 हजार फीट की ऊंचाई पर ही उड़ान भरनी होती है, ताकि यात्रियों को सांस लेने में कोई दिक्कत न हो। लेकिन इस विशालकाय पर्वतमाला में 20-25 मिनट के समय में 30-35 हजार फीट से 8-10 हजार फीट पर आना संभव नहीं है।
नेविगेशन की कमी
हिमालय के इलाकों में नेविगेशन की उचित सुविधा मौजूद वहीं है। यहां आप पास कोई भी नेविगेशन सुविधा नहीं है। ऐसे में आपातकाल में विमान एयर कंट्रोल से संपर्क नहीं कर सकते हैं। आपातकाल की स्थिति में प्लेन को कम से कम समय में नजदीकी एयरपोर्ट पर इमरजेंसी लैंडिग करनी पड़ जाती है, जबकि हिमालय के इलाकों में दूर-दूर तक कोई एयरपोर्ट नहीं बना हुआ है। यही कारण हैं कि विमानों को बेशक घूम-फिरकर जाना पड़े, लेकिन उनका रूट हिमालय के ऊपर से नहीं बनाया गया।