गर्भशय कैंसर महिलाओं को होने वाला सबसे आम कैंसर हैं। इसी में एंडोमेट्रियल कैंसर का नाम आता है। दरअसल, गर्भशय की भीतरी लाइनिंग को एंडोमेट्रियल के नाम से जाना जाता है। कई बार इसके अंदर की सतह मोटी होने लगती है और कैंसरयुक्त गांठों का रूप ले सकते हैं, जो एंडोमेट्रियल कैंसर का लक्षण हो सकता है। आमतौर पर ये समस्या 40 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं को होती है।अगर इसपर ध्यान न दिया जा यह भयानक रूप ले सकता है। इसलिए इसके बारे में जानें और लक्षणों की पहचान कर वक्त रहते इसका इलाज करवा लें। आइए आपको बताते हैं इसके लक्षण और बचाव का तरीका।
एंडोमेट्रियल कैंसर के लक्षण
पेल्विक हिस्से में दर्द
अनियमित ब्लीडिंग और डिस्चार्ज के साथ ही जननांगो के हिस्से में दर्द एंडोमेट्रियल कैंसर का संकेत हो सकता हैं। ऐसे गर्भशय में ट्यूमर बढ़ने के कारण होता है। इसलिए इसे नजरअंदाज न करें, जितनी जल्दी हो सके डॉक्टर से अपनी जांच करवाएं।
बार-बार यूरिन आना
ब्लैडर गर्भाशय से जुड़ा होता है तो यहां पर ट्यूमर होने से यूरिन से जुड़ी समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है। एंडोमेट्रियल कैंसर के दौरान आपको बार-बार यूरिन आना , यूरिन करने में परेशानी, यूरिन करते वक्त दर्द आदि जैसे संकेत दिखते हैं।
वैजाइनल ब्लीडिंग
पीरियड्स के अलावा भी ब्लीडिंग होना सामान्य नहीं है। ये एंडोमेट्रियल कैंसर के लक्षण हो सकते हैं। इसे हल्के में न लें।
वजन कम होना
अचानक वजन कम होना भी एंडोमेट्रियल कैंसर का एक संकेत हैं। अगर आप लंबे समय से इस लक्षण का अनुभव कर रही हैं और बिना डाइट को कम किए पतली हो रही हैं तो सतर्क हो जाएं।
शारीरिक संबंध बनाते हुए दर्द महसूस होना
अगर आपको शारीरिक संबंध बनाते समय काफी दर्द होता है तो इसे अनदेखा न करें। ये भी एंडोमेट्रियल कैंसर का शुरुवाती लक्षण है।
ऐसे हो सकता है एंडोमेट्रियल कैंसर से बचाव
हेल्दी डाइट, नियमित एक्सरसाइज से बढ़ते वजन को नियंत्रित रखें। इसके अलावा पीरियड्स के दौरान कोई भी असामान्य लक्षण नजर आए तो स्त्री रोग विशेषज्ञ से सलाह लें।
नोट- ऊपर वाले कोई लक्षण दिखने पर गर्भाशय का अल्ट्रासाउंड करवाएं। अगर रिपोर्ट में संदेह हो तो एंडोमेट्रियम की बायोप्सी से पता चस सकता है कि गांठें कैंसरयुक्त हैं या नहीं? अगर रिपोर्ट पॉजिटिव हो तो सर्जरी करके पूरे यूट्रस के निकाल दिया जाता है। फिर जरूरत के अनुसार मरीज को रेडिया या कीमो थेरेपी दी जाती है। उपचार के बाद तीन से छह महीने के भीतर बीमार स्त्री पूरी तरह से स्वस्थ हो जाती है।