
नारी डेस्क: कुछ दिनों पहले पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने सोनिया और उसके पति संजीव कुमार को, अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है और हरियाणा सरकार को दो महीने के अंदर उनकी समय से पहले रिहाई के मामले पर विचार करने का निर्देश दिया है। सोनिया वही है जिसने अपने पति के साथ मिलकर परिवार के आठ लोगों की हत्या कर दी थी। आरोपी के 3 महीने की बच्ची को मारते वक्त भी हाथ नहीं कांपे थे।

23 अगस्त, 2001 की रात घर में बिछी लाशें
दोनों ने 23 अगस्त, 2001 की रात को हिसार के बाहरी इलाके में उनके फार्महाउस पर सो रहे रेलू राम पूनिया (50), उनकी पत्नी कृष्णा देवी (41), बेटी (14), बेटे सुनील कुमार (23), बहू शकुंतला देवी (20), चार साल के पोते और दो पोतियों, जिसमें एक 3 महीने की बच्ची भी शामिल थी की हत्या कर दी थी। पूनिया ने 1996 में हिसार के बरवाला सेगमेंट से विधानसभा चुनाव जीता था और वह करोड़पति थे।
प्रॉपर्टी विवाद में मार दिया परिवार
अगले दिन सुबह जब यह मामला सामने आया, तो सोनिया अपने कमरे में बेहोश मिलीं क्योंकि उन्होंने कोई ज़हरीला पदार्थ खा लिया था। उस रात परिवार ने अपनी 14 साल की बेटी का जन्मदिन मनाया था, जिसे सोनिया हॉस्टल से वापस लाई थीं। आधी रात के बाद सोनिया और संजीव गैरेज से एक लोहे की रॉड लाए और अलग-अलग कमरों में परिवार के सदस्यों को मार डाला।सोनिया और उनके भाई सुनील, जो पूनिया की पहली पत्नी के बेटे थे के बीच प्रॉपर्टी का विवाद था, जिसे इन हत्याओं की वजह बताया गया था।

दोनों को मिली थी मौत की सजा
हिसार की ट्रायल कोर्ट ने मई 2004 में दोनों को मौत की सज़ा सुनाई थी। अप्रैल 2005 में हिसार की सेशंस कोर्ट द्वारा भेजे गए मर्डर रेफरेंस पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने मौत की सज़ा को उम्रकैद में बदल दिया। इस फैसले को राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और फरवरी 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को पलटते हुए मौत की सज़ा बरकरार रखी। दोनों ने रिव्यू पिटीशन दायर की, जिसे अगस्त 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। दया याचिका खारिज होने के बाद, दोनों सुप्रीम कोर्ट गए और जनवरी 2014 में, दया याचिका पर फैसला लेने में देरी के आधार पर उनकी मौत की सज़ा को उम्रकैद में बदल दिया गया।
23 साल बाद आरोपी रिहा
दोनों ने 23 साल और 10 महीने से ज़्यादा की सज़ा पूरी कर ली है और छूट मिलाकर कुल हिरासत की अवधि 28 साल और 10 महीने से ज़्यादा है। उन्होंने समय से पहले रिहाई के लिए राज्य सरकार से संपर्क किया था, जिसे अगस्त 2024 में यह निर्देश देते हुए खारिज कर दिया गया था कि वे अपनी आखिरी सांस तक जेल में रहेंगे। उन्होंने इसी आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। संबंधित अतिरिक्त मुख्य सचिव (सक्षम अधिकारी) ने समय से पहले रिहाई के मामलों को देखने के लिए अधिकृत राज्य-स्तरीय समिति की सिफारिश पर यह खारिज करने का आदेश पारित किया था। दोनों पहले ही 21 साल से ज़्यादा की असल सज़ा और छूट के साथ 26 साल से ज़्यादा की कुल सज़ा काट चुके हैं। इसलिए, उन्हें रिहा किया जाए।