हिंदू धर्म में हर व्रत का खास महत्व होता है, लेकिन एकादशी व्रत का शास्त्रों में खास महत्व बताया गया है। एकादशी की तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। इसे हरि का दिन या हरि वासर भी कहते हैं। हर महीने में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में एकादशी की दो तिथियां पड़ती हैं। शास्त्रों के अनुसार, भी एकादशी व्रत के कुछ खास नियम बताए गए हैं। आज यानी की 6 सितंबर को परिवर्तनी एकादशी का व्रत है। इस एकादशी में भगवान विष्णु अपने शयन में करवट बदलते हैं। इसलिए इस एकादशी को परिवर्तनी एकादशी कहते हैं। भाद्रपद महीने की शुक्लपक्ष तिथि को परिवर्तनी एकादशी मनाई जाती है। व्रत का पारण अगले दिन किया जाता है। तो चलिए आपको बताते हैं परिदर्शनी एकादशी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें...
परिवर्तनी एकादशी के व्रत की विधि
पुराणों के अनुसार, परिवर्तनी एकादशी में जल से भरे हुए घड़े के ऊपर एक कपड़ा लपेटकर चावल और दही के साथ इसका दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है। यदि आपने देवशयनी के दिन भगवान विष्णु को सुलाया है तो उनकी मूर्ति की करवट बदलकर सुलाना चाहिए। शास्त्रों के मुताबिक, भगवान विष्णु को दक्षिण दिशा की ओर करवट करके सुलाना चाहिए।
पूजा की विधि
. सुबह स्नान करने के लिए पानी में गंगाजल डालें। इसके बाद भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने व्रत रखकर संकल्प लें।
. इसके बाद पूजा की चौकी पर एक पीला कपड़ा बिछा दें। कपड़ा बिछाकर श्रीहरि के वामन अवतार की तस्वीर स्थापित करें। यदि आपके पास भगवान विष्णु के वामन अवतार की तस्वीर नहीं है तो आप भगवान विष्णु की तस्वीर स्थापित कर सकते हैं। इसके बाद तस्वीर रखकर वामन देव का स्मरण करें।
. भगवान विष्णु को पीला चंदन, पीले फूल, तुलसी दल, पीले रंग के व्यंजन से बने भोग को अर्पित करें। पूजा में पहले आप शंख में जल, दूध, पंचामृत डालकर अभिषेक जरुर करें।
. पूजा करते समय ऊं नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि, तन्ना विष्णु प्रचोदयात मंत्र का जाप करें। यह मंत्र सारे मनोरथ पूरे करता है।
. एकादशी के व्रत में पीपल के पेड़ की पूजा करना भी बहुत ही शुभ माना जाता है। पीपल के पेड़ की पूजा करने से मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं। इससे घर में भी बरकत बनी रहती है।
. धूप दीप लगाकर एकादशी तिथि पर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी जरुर करें। पाठ करने के बाद भगवान वामन की कथा पढ़ें। कथा पढ़ने के बाद आरती करें और जरुरतमंद लोगों को दान दक्षिणा भी जरुर दें।
एकादशी पर क्यों नहीं खाए जाते चावल?
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महार्षि मेधा जी ने अपने शरीर को त्याग दिया था। जिसके बाद उनका शरीर धरती माता के अंश में समा गया था। ऐसा माना जाता है जिस दिन महार्षि मेधा जी का शरीर धरती में समाया था, उस दिन भी एकादशी थी। इसके बाद महार्षि मेधा ने चावल और जौ के रुप में धरती पर अवतार लिया था। इसलिए लोग चावल और जौ को एक जीव ही मानते हैं। जिसके कारण एकादशी के दिन चावल नहीं खाए जाते।