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मदर टेरेसा: मानवता की सेवा को 18 साल की उम्र में छोड़ा घर

  • Edited By Shiwani Singh,
  • Updated: 26 Aug, 2021 12:45 PM
मदर टेरेसा: मानवता की सेवा को 18 साल की उम्र में छोड़ा घर

दुनिया में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपनी पूरी जिंदगी दूसरों की सेवा में गुजार देते हैं। उन्हीं में से एक थीं मदर टेरेसा। आज मदर टेरेसा का जन्मदिन है। 26 अगस्त 1910 में मेसिडोनिया की राजधानी स्कोप्जे में उनका जन्म हुआ था। 

ये है पहला नाम

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मदर टेरेसा का जन्म स्कॉप्जे के एक साधारण परिवार में हुआ था। उनका शुरुआती नाम 'अगनेस गोंझा बोयाजिजू' था। अबलेनियन भाषा में गोंझा का मतलब होता है 'फूल की कली'। उनके पिता निकोला बोयाजू एक साधारण व्यवसायी थे।

मां ने किया पालन-पोषण

जब मदर टेरेसा 12 वर्ष की थीं तभी उनके पिता का देहांत हो गया। जिसके बाद उनकी मां द्राना बोयाजू ने उनका और उनके भाई-बहनों का पालन पोषण किया। मदर टेरेसा पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं। उनके चार भाई-बहनों में से दो की बचपन में ही मृत्यु हो गई थी। 

गाना गाने का था शौक 

मदर टेरेसा एक अध्ययनशील और प्रतिभाशाली महिला थीं। उन्हें गाना गाने का बचपन से ही शौक था। वह पढ़ाई लिखाई के साथ गिरजाघर में गाना गाती थीं। वे और उनकी बहनें घर के पास के चर्च में मुख्य गायिका थीं। 

18 साल की उम्र में छोड़ा घर और देश

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ऐसा कहा जाता है कि मदर टेरेसा को 12 वर्ष की उम्र में आभास हो गया था कि वह अपना पूरा जीवन गरीबों और दीन-दुखियों की सेवा में गुजारेंगी। यही वजह थी की उन्होंने 18 साल की उम्र में अपना घर और देश छोड़ दिया और 'सिस्टर्स ऑफ लोरटो' में शामिल होने का निर्णय लिया। इसी दौरान अंग्रेजी की शिक्षा के लिए वह आयरलैंड चली गईं, जहां उन्होंने अंग्रेजी सीखी।

ऐसे हुआ भारत आगमन

अंग्रेजी सीखने के  बाद  टेरेसा 6 जनवरी 1929 को कोलकाता में लोरेटो कॉनवेंट पहुंचीं। यहां उन्होंने बच्चों को पढ़ाया। उनके स्वभाव की वजह से स्टूडेंट्स उनका बहुत सम्मान करते थे। उनका मन भारत में रम गया लेकिन यहां फैली गरीबी, दरिद्रता और लाचारी उन्हें प्रभावित करती थी। मदर टेरेसा ने 1946 में गरीबों, बेसहारा और लाचारों की पूरी जिंदगी मदद करने का मन बना लिया। टेरेसा ने पटना में नर्सिग की ट्रेनिंग पूरी की और इसके बाद 1948 में वह कोलकाता आ गईं। यहां उन्होंने तालतला में गरीब बुजुर्गों को सेवा की।  

1950 में की मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना

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मदर टेरेसा ने 7 अक्टूबर 1950 में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की। संस्था का उद्देशय गरीबों, बेसराहा, भूखों, निर्वस्त्र, बेधर और बीमार लोगों की मदद करना था। उन्होंने 'निर्मल हृदय'  और 'निर्मल शिशु भवन' नाम के आश्रम भी खोले। 

कई पुरस्कारों से नवाजा गया

मानवता की सेवा करने के लिए टेरेसा को कई पुरस्कारों से नवाजा गया। भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री और 1980 में भारत रत्न  से अलंकृत किया।  वर्ष 1979 में उन्हें नोबल शांति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। उन्होंने नोबेल पुरस्कार में मिली पुरी राशि गरीबों की देखभाग के लिए लगा दी। इसके बाद भी वह मानव जाति की सेवा का काम निरंतर करती रहीं। 5 सितंबर, 1997 को उन्होंने अंतिम सांसे ली और इस दुनियां को अलविदा कह दिया।
 

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