इन दिनों जहां भारत जैसे पुरुष- प्रधान देश में भी महिलाओं की स्थिति काफी हद तक सुधारी है, वहीं आइसलैंड में लौंगिक समानता को लेकर बहस छिड़ना काफी हैरान करने वाला है। जी हां, पश्चिमी देश जहां लौंगिक सामनता पर काफी जोर दिया जाता है, वहीं आइसलैंड की पीएम को महिलाओं को सामान अधिकार दिलवाने के लिए हड़ताल पर जाना पड़ा। रिपोर्ट्स की मानें तो एक दिन आइसलैंड की महिलाओं ने तय किया की वो घर या बाहर का काम नहीं करेंगी। पिछले साल 24 अक्टूबर को आइसलैंड की पीएम कैटरीन जकोब्स्दोतिर भी इस हड़ताल का हिस्सा बनीं। बता दें, ये हड़ताल पुरुषों के बराबर सैलरी न मिलने और लौंगिक हिंसा के विरोध में थी।
पीएम कैटरीना जैकब्सडॉटिर ने महिलाओं के अधिकार के लिए उठाया बड़ा कदम
कैटरीन का कहना था कि वो ऑफिस नहीं जाएंगी और देश नहीं संभालेंगी। उन्होंने अपनी मंत्रिमंडल की दूसरी महिलाओं से भी ये ही उम्मीद की थी। बता दें, इस हड़ताल को वैसे तो ट्रेड यूनियनों ने शुरू की थी, पर बाद में आइसलैंड के पीएम और बाकी सारी महिलाओं ने भी इसमें बढ़-चढ़कर भाग लिया। 24 अक्टूबर को पूरे देश में बंदी जैसे हालात हो गए थे। कोई भी महिला काम पर नहीं गई। स्कूल बंद, पब्लिक ट्रांसपोर्ट में देरी, अस्पतालों में कर्मचारियों की कमी, होटलों में स्टाफ की कमी। यहां तक कि न्यूज़ चैनलों पर पुरुष न्यूज प्रेजेंटर इसकी घोषणा करते दिखे। जिन क्षेत्रों में महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादातर है, जैसे हेल्थकेयर और शिक्षा, वो क्षेत्र इस हड़ताल से खासकर प्रभावित हुए हैं। हड़ताल का उद्देश्य महिलाओं के प्रति वेतन भेदभाव और लिंग आधारित हिंसा के बारे में जागरूकता बढ़ाना था और हड़ताल के बाद से आइसलैंड में महिलओं की स्थिति में सुधार देखने को मिला है, हालांकि ये काफी धीमी गति में हैं।
आइए आपको बताते हैं कैटरीन जकोब्स्दोतिर के बारे में जिन्होंने इस हड़ताल में बढ़- चढ़कर भाग लिया।
कौन हैं कैटरीन जकोब्स्दोतिर?
साल 1976 में जन्मीं कैटरीन ने यूनिवर्सिटीऑफ आइसलैंड से बैचलर डिग्री हासिल की। कुछ समय तक वो एक न्यूज एजेंसी में language adviser के तौर पर काम कर रही थीं। लेकिन उनका झुकाव हमेशा से पॉलिटिक्स की तरफ ही था। वो लोगों तक अपने विचार पहुंचाना चाहती थी। उन्होंने Left-Green Movement पार्टी साल 2003 में ज्वाइन की। साल 2009 फरबरी से 2013 मई तक वो आइसलैंड की education, science, and culture की मंत्री रहीं।
साल 2017 तक वो अपनी दमदार मुद्दों के चलते लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गई थीं। भारी मातों से वोट पाकर वो आइसलैंड की 28वीं पीएम बनीं। कैटरीन हमेशा से महिलाओं के लिए अपनी आवाज उठाने को लेकर जानी जाती हैं और कई महिलाओं के लिए प्रेरणा भी हैं।