हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का खास महत्व बताया गया है। एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को कई पापों से मुक्ति मिलती है और श्री हरि भगवान की विशेष कृपा मिलती है। एक महीने में दो एकादशी व्रत रखे जाते हैं। एक एकादशी का व्रत शुक्ल पक्ष में रखा जाता है तो दूसरी एकादशी का व्रत कृष्ण पक्ष में। चैत्र महीने में मनाई जाने वाली एकादशी को कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, कामदा एकादशी का व्रत करने से भक्तों की इच्छाएं पूरी होती हैं। लेकिन इस बार कामदा एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा और पूजा के लिए शुभ मुहूर्त क्या है आज आपको इस बारे में बताएंगे। आइए जानते हैं।
कल रखा जाएगा एकादशी का व्रत
एकादशी का व्रत 19 अप्रैल यानी की कल रखा जाएगा। हिंदू पंचागों के अनुसार, एकादशी की तिथि 18 अप्रैल शाम 05:32 मिनट से शुरु हो रही है और इसका समापन 19 अप्रैल को रात 08:05 पर होगा। ऐसे में उदया तिथि की मानें तो एकादशी का व्रत 19 अप्रैल को रखा जाएगा। व्रत के पारण का शुभ समय 20 अप्रैल को सुबह 05:20 मिनट से लेकर रात 08:26 तक का रहेगा।
एकादशी का महत्व
पद्म पुराण के अनुसार, कामदा एकादशी का व्रत रखने से ब्रह्महत्या और अनजाने में किए हुए पापों से छुटकारा मिलता है। यह एकादशी पिशाचत्व जैसे दोषों का नाश भी करती है। इस एकादशी के व्रत करने से और कथा सुनने से ही वाजपेय यज्ञ जितना पुण्य मिलता है। यह व्रत सारे दोषों से छुटकारा दिलवाता है और भक्तों की सारे मनोकामनाएं पूरी करता है।
ऐसे करें पूजा
एकादशी वाले दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने के बाद साफ और पीले कपड़े पहनें। इसके बाद व्रत का संकल्प लें, फिर एक लकड़ी की चौकी पर कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की तस्वीर या फिर प्रतिमा रखें। भगवान विष्णु की मूर्ति को ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का उच्चारण करते हुए पंचामृत के साथ स्ना करवाएं। इसके बाद मूर्ति को वस्त्र, चंदन, जनेऊ, इत्र, फूल, चावल, धूप-दीप, नैवेद्य चढ़ाएं। इसके बाद कपूर के साथ भगवान विष्णु की आरती उतारें।
कामदा एकादशी की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक पुंडरीक नाम का राजा था। यह राजा भोग-विलास में ही डूबा रहता था। उसके राज्य में ललित और ललिता नाम के एक स्त्री और पुरुष बहुत प्यार से रहते थे। एक दिन राजा की सभा में ललित गाना गा रहा था लेकिन तभी उसका ध्यान उसकी पत्नी की ओर गया जिसके कारण उसका स्वर बिगड़ गया। यह देखकर राजा बहुत क्रोधित हुआ और उसने क्रोध में आकर ललित को राक्षस बनने का श्राप दे दिया। राजा के श्राप के कारण ललित मांस खाने वाला राक्षस बन गया। अपने पति का यह हाल देखकर उसकी पत्नी बहुत ही दुखी हो गई। अपने पति को ठीक करने के लिए वह विध्यांचल पर्वत पर श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई। ऋषि के पास जाकर उसने अपने पति का पूरा हाल उन्हें सुनाया। इसके बाद ऋषि ने ललिता को अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए कामदा एकादशी का व्रत रखने के लिए कहा। ऋषि ने यह भी कहा कि यदि वे कामदा एकादशी का व्रत रखती हैं तो उसका पति ललित फिर से मनुष्य योनि में आ जाएगा। ललिता ने ऋषि के कहने पर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए पूरे विधि-विधान के साथ कामदा एकादशी का व्रत किया। चैत्र शुक्ल एकादशी का व्रत किया और अगले दिन द्वादशी का पारण करके व्रत पूरा किया। इस तरह से व्रत पूरा करके भगवान विष्णु ने ललिता के पति को फिर से मनुष्य योनि में भेजकर राक्षस योनि से मुक्त कर दिया। ऐसे दोनों के जीवन के कष्ट खत्म हुए और दोनों को अंत में मोक्ष प्राप्त हुआ।