29 APRMONDAY2024 2:02:18 PM
Nari

Janmashtami Vrat Katha: जन्‍माष्‍टमी पर पढ़ना ना भूलें व्रत कथा, यहां पढ़िए पूरी कहानी

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 29 Aug, 2021 02:10 PM
Janmashtami Vrat Katha: जन्‍माष्‍टमी पर पढ़ना ना भूलें व्रत कथा, यहां पढ़िए पूरी कहानी

कन्‍हैया का जन्‍म उत्सव भाद्रपद माह के कृष्‍ण पक्ष की अष्‍टमी को मनाया जाता है। जन्‍माष्‍टमी का पर्व पूरे भारत में उल्लास व श्रद्धा के साथ सेलिब्रेट किया जाता है। इस दौरान महिलाएं पुत्र व पति की लंबी आयु के लिए व्रत भी करती हैं। मान्यता है कि जन्माष्टमी का व्रत करने से संतान प्राप्ति का सुख भी मिलता है। मगर, जन्माष्टमी का व्रत पूजा व कथा के बिना अधूरा है। मान्‍यता है कि कान्हा की जन्‍मकथा सुनने मात्र से ही सभी पाप नष्ट हो जाते है और शांत‍ि, धन-ऐश्‍वर्य मिलता है। ऐसे में अगर आप व्रत नहीं भी रख रहे तो व्रत कथा जरूर पढ़ें। ऐसे में अगर आप व्रत रख रही हैं तो कथा पढ़ना ना भूलें। यहां पढ़िए जन्माष्टमी की पूरी व्रत कथा...

स्‍कंद पुराण में है जन्‍माष्‍टमी की यह व्रत कथा

स्‍कंद पुराण के अनुसार, द्वापर युग में मथुरा में उग्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा था, जो बहुत ही सीधा-साधा था। उनके भोलेपन का फायदा उठाकर उनके पुत्र कंस ने ही उनका सारा राज-पाठ हड़प लिया। कंस अपनी बहन देवकी से बहुत प्रेम करता था।

PunjabKesari

ऐसी हुई थी तब आकाशवाणी

कुछ समय बाद देवकी का विवाह वसुदेव से हुआ और विवाह संपन्‍न होने के बाद कंस स्‍वयं बहन को ससुराल छोड़ने गए। तभी एक आकाशवाणी हुई कि जिस बहन को तुम इतने प्रेम से विदा करने जा रहे हो उसी बहन का आठवां पुत्र तेरा वध कर देगा। आकाशवाणी सुनते ही कंस क्रोधित हुआ और उसने देवकी-वसुदेव करने लगा। तभी वसुदेव ने कहा कि वो देवकी को कोई नुकसान न पहुंचाए। वह स्‍वयं ही अपनी 8वीं संतान कंस को सौंप देगा वसुदेव की बात सुन कंस ने दोनों को कारागार में डाल दिया।

कारागार में जन्‍में श्रीकृष्‍ण

कंस ने देवकी की सात संतानों का जन्म के समय ही वध कर दिया। इसके बाद देवकी ने भाद्रपद माह के कृष्‍ण पक्ष की अष्‍टमी को रोहिणी नक्षत्र में कान्हा को जन्म दिया। तभी भगवान विष्‍णु ने वसुदेव को दर्शन देते हुए कहा कि उन्होंने स्‍वयं ही उनके पुत्र के रूप में जन्‍म लिया है। श्रीहर‍ि ने वसुदेवजी से कन्‍हैया को वृंदावन में अपने मित्र नंदबाबा के घर छोड़ने को कहा। इसके बाद वसुदेव जी ने वैसा ही किया।

PunjabKesari

तब खुद ही खुल गए कारागार के ताले

वसुदेव जी ने जैसे ही कान्हा को गोद में उठाया कारगार के ताजे खुद ब खुद ही खुल गए। वहीं पहरेदार गहरी नींद में चले गए थे। तब वसुदेव जी ने कान्हा को टोकरी में रखकर वृंजावन की ओर गए। कहा जाता है कि उस दौरान यमुना जी अपने पूरे ऊफान पर थीं। फिर वसुदेव जी ने नन्हें कान्हा की टोकरी को सिर पर रखकर यमुना नदी को पार किया और नंद बाबा के गांव पहुंचे थे। फिर वहां पर उन्होंने ने कृष्णा जी को माता यशोदा जी के साथ पास रख दिया और उनकी कन्‍या को उठाकर वापस मथुरा आ गए।

कंस ने वृंदावन में जन्‍में नवजातों की करें पहचान

स्‍कंद पुराण के अनुसार, देवकी मां के आठवीं संतान को जन्म देने के बाद कंस कारागार में पहुंचा। तब वह वहां पर पुत्र की जगह कन्या को देखकर हैरान रह गया है। मगर फिर भी वह उसे मारने के लिए जमीन पर जोर से पटकने लगा। उस समय मायारूपी कन्‍या आसमान में पहुंची और बोली,' रे मूर्ख मुझे मारने से कुछ नहीं होगा। तेरा काल पहले से ही वृंदावन पहुंच गया है और वह जल्‍दी ही तेरा अंत करने आएगा।' यह सुनकर कंस ने  तब वृंदावन में जन्‍में सभी नवजातों का पता लगाना शुरु कर दिया।

PunjabKesari

इस पावन कथा को पढ़ने व सुनने वाले के दुख दूर होते हैं

जब कंस को यशोदा मैय्या की संतान का पता चला तो उसने नवजात को मारने की बहुत सी कोशिश की। उसने कई बाल रूप भगवान को मारने के लिए कई राक्षसों को भेजा। मगर वे भगवान का कुछ भी बिगाड़ नहीं पाएं। तब कंस को इस बात का आभास हो गया कि देवकी और वसुदेव की आठवीं संतान नंदबाबा व यशोदा माता का पुत्र है। फिर भगवान श्रीकृष्ण ने युवावस्‍था में मथुरा जाकर अत्याचारी कंस का वध कर दिया। इसतरह जो भी यह पावन कथा को पढ़ता या सुनता है उसके सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से व्रती व पूजा करने के जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली का वास होता है।

 

Related News