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खतना प्रथा: लोगों का अंधविश्वास महिलाओं की सेहत के साथ कर रहा खिलवाड़

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 11 Feb, 2020 10:25 AM
खतना प्रथा: लोगों का अंधविश्वास महिलाओं की सेहत के साथ कर रहा खिलवाड़

दुनियाभर में अलग-अलग रंग-जाति, धर्म और समुदाय के लोग रहते है, जिनकी अपनी संस्कृति, मान्यताएं और परंपराएं है, उन्हीं में से एक है खतना। कभी सोचा अगर आपका कोई एक हिस्सा काट दे तो? लेकिन ऐसा किया जा रहा है भारत समेत दुनिया के कई देशो में।

 

हैरानी की बात तो यह है कि इस प्रथा का असर महिलाओं की सेहत पर भी पड़ रहा है, जिसके ना उन्हें ना सिर्फ प्रेगनेंसी बल्कि कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जी हां, महिला जननांग कर्तन या फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन, जिसे आमतौर पर खतना भी कहा जाता है एक ऐसी क्रूर प्रथा है, जो महिलाओं के स्वास्थ्य पर असर डाल रही है।

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इस प्रथा में महिला को सिर्फ नीचे से अपने अतिरिक्त त्वचा को हटाना होता है। हर साल 20 करोड़ से अधिक बच्चियों को इसका सामना करना पड़ता है। ऐसा आमतौर पर जन्म से 15 वर्ष के बीच किया जाता है। इसमें महिलाओं को इंफैक्शन, रक्तस्राव या मानसिक सदमा जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। एक स्‍टडी में खुलासा हुआ कि बोहरा समुदाय के एक समूह में 7 और उससे अधिक उम्र की 75% लड़कियों का जेनिटल म्यूटिलेशन किया गया था। वहीं 33% महिलाओं ने बताया कि इसके कारण उन्हें दर्दनाक पेशाब, पीरियड्स के दिनों में असुविधा और कई मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ा।

फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन क्‍या है? 

फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन (FGM) में गैर-चिकित्सा कारणों से बाहरी महिला जननांग को हटाना होता है। हैरानी की बात तो यह है कि लड़कियों का खतना 6-7 साल की छोटी उम्र में ही करा दिया जाता है, जिससे पहले उन्हें एनीस्थीसिया भी नहीं दिया जाता। बच्चियां पूरे होशोहवास में रहती हैं और दर्द से चीखती हैं। पारंपरिक तौर पर इसके लिए ब्लेड या चाकू का इस्तेमाल करते हैं और खतना के बाद हल्दी, गर्म पानी और छोटे-मोटे मरहम लगाकर दर्द कम करने की कोशिश की जाती है।

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बोहरा मुस्लिम मानते हैं कि इसकी मौजूदगी से लड़की की यौन इच्छा बढ़ती है। वहीं इंसिया दरीवाला ने कहा, "माना जाता है कि क्लिटरिस हटा देने से लड़की की यौन इच्छा कम हो जाएगी और वो शादी से पहले यौन संबंध नहीं बनाएगी।"

महिलाओं के स्वास्थ के साथ छेड़छाड़

WHO कहता है कि FGM लड़कियों व महिलाओं के लिए कई मायनों में हानिकारक है। यह क्रूर प्रक्रिया महिला के स्वस्थ प्राइवेट पार्ट के साथ छेड़छाड़ करती है, जिसके कारण उन्हें...

. इंफेक्‍शन 
. यूरिन संबंधी समस्या
. पेशाब करते समय जलन
. मासिक धर्म के दौरान खून
. पीरिड्स में असहनीय दर्द
. प्रसव में कठिनाई
. संबंधों के दौरान समस्याएं
. प्रेगनेंसी में प्रॉब्लम या मिसकैरेज
. जननांग के ऊतकों के में चोट
. सदमे के कारण मौत
. घावों का देरी से उपचार
. तनाव, डिप्रेशन और आजीवन मानसिक असंतुलन
. लगातार यूटीआई की समस्‍या  जैसी प्रॉब्लम्स का सामना करना पड़ता है।

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इंटरनेशनल डे ऑफ जीरो टॉलरेंस फॉर एफजीएम

अफ्रीका, मध्य पूर्व और एशिया के 30 देशों में 200 मिलियन से अधिक लड़कियां हैं, जो इस प्रक्रिया से गुजर चुकी हैं। हालांकि WHO इस क्रूर प्रथा को खत्म करने के लिए कई कदम उठा रहा है। वहीं UN इस प्रथा को 'मानवाधिकारों का उल्लंघन' मानता है। बता दें कि महिला खतना के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इसे रोकने के मकसद से UN ने साल की 6 फरवरी तारीख को 'इंटरनेशनल डे ऑफ जीरो टॉलरेंस फॉर एफजीएम' घोषित किया है।

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लोगों के अंधविश्वास का सच

लोगों की इस क्रूर प्रथा को लेकर अलग-अलग मान्यताएं है। कुछ का कहना है कि खतना 'हाइजीन' यानी साफ-सफाई के मकसद से किया जाता है। वहीं कुछ का मानना है कि इससे लड़कियों की यौन इच्छा काबू में रहती हैं तो वहीं कुछ कहते हैं यह यौन इच्छा बढ़ाने के लिए है। वहीं, इंसिया कहती हैं, 'हमारे समुदाय के लोग खतना की वजहें बदल-बदलकर बताते रहते हैं. पहले वो कहते थे ये सफ़ाई के लिए है, फिर कहा कि लड़कियों की यौन इच्छा काबू में करने के लिए है और जब इसका विरोध हो रहा है तो कहते हैं यौन इच्छा बढ़ाने के लिए है।'

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अगर यह वाकई हाइजीन या यौन इच्छा के मकसद से किया जाता है तो 7 साल की बच्ची का इससे क्या क्नैक्शन? जाहिर सी बात है कि यह सब बेवकूफ बना रहे हैं और प्रथाओं के नाम पर महिलाओं की सेहत व भावनाओं के साथ खिलड़वाड़ कर रहे हैं।

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