कोरोना वायरस का टेस्ट करने के लिए ज्यादातर डॉक्टर रैपिड एंटीजन टेस्ट का सहारा ले रहे हैं। लेकिन क्या यह टेस्ट पूरी तरह सटीक रिजल्ट देता है। दरअसल, हाल ही में महाराष्ट्र हॉस्पिटल में एक मरीज का रैपिड एंटीजन टेस्ट नेगेटिव आया लेकिन जब उसका पीसीआर टेस्ट किया गया तो वह कोरोना पॉजिटिव पाया गया। ऐसे में लोगों के मन में सवाल उठ रहे हैं कि क्या कोरोना टेस्ट पर भरोसा किया जा सकता है।
नेगिटिव होने के बाद भी कोरोना रिपोर्ट आ सकती है गलत?
वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना रैपिड एंटीजन टेस्ट में पहले हुए संक्रमण के मृत वायरस या उनके टुकड़े भी मिल सकते है। यही वजह है कि जब कोरोना मरीजों का कई हफ्तों बाद भी टेस्ट किया जाता है तो वो कई बार पॉजिटिव आ जाता है। हालांकि इन मृत कणों से कोरोना फैलने का कोई खतरा नहीं होता।
कम वायरस होने पर भी नेगेटिव आ सकता है रिजल्ट
शोधकर्ताओं का कहना है कि टेस्ट रिपोर्ट का गलत होना इस बात की ओर भी इशारा करता है कि कम वायरस के होने पर भी नतीजा नेगेटिव आ सकता है। ऐसे में इससे संक्रमण के मामले बढ़ सकते हैं। ऐसे में शोधकर्ता कोरोना जांच के लिए एक ऐसा तरीका खोजने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे सटीक रिजल्ट मिल सके।
इलाज के बाद ठीक होने पर भी क्यों आता है टेस्ट पॉजिटिव?
ठीक होने के बाद भी कई बार मरीज अस्पताल में एडमिट रहते थे। ऐसा इसलिए वायरस के कण गले की जिन पेशियों में होते हैं उनकी जिंदगी 3 महीने की होती है। ऐसे में वायरस मरने के बाद भी इन पेशियों में रहता है, जिसकी वजह से टेस्ट रिजल्ट पॉजिटिव आ सकता है।
कैसे पता चलेगा वायरस जिंदा है या नहीं?
स्टडी के मुताबिक, अगर मरीज में लगातार 3 दिन तर कोई लक्षण ना दिखे तो गले का सैंपल लेकर कल्चर किया जाता है। अगर कल्चर में वायरस अपने जैसा वायरस पैदा कर ले तो मतलब वो जिंदा है। अगर ऐसा ना हो तो वो मर चुका है यानि उससे संक्रमण का खतरा नहीं है। इसे वैज्ञानित भाषा में 'वायरल कल्चरिंग' भी कहा जाता है।
कैसे होता है कोविड-19 टेस्ट?
कोरोना की जांच पीसीआर स्वैब टेस्ट के जरिए जाती है, जिसमें कैमिकल का इस्तेमाल कर जेनेटिक मटीरियल को पहचाना जाता है। इसमें गले व नाक के सैंपल लिए जाते हैं क्योंकि ज्यादातर वायरस के कण यहीं से शरीर में प्रवेश करते हैं।