जब कोई महिला पहली बार मां बनने जाती है ताे उसे आर्शीवाद दिया जाता है कि "भगवान तुम्हे एक अच्छा पुत्र दे"। ये क्यों नहीं कहा जाता कि भगवान तुम्हे स्वस्थ बच्चा दे। क्योंकि एक मां के लिए तो हर बच्चा प्यारा होता हे चाहे वह लड़का हो या लड़की। पर इस समाज का क्या करें जो सिर्फ लड़के की मां को भाग्यशाली मानता है और लड़कियाें की मां को बेचारी मान बैठता है।
बेटी होने पर तसल्ली देते हैं लोग
जब किसी महिला की पहली औलाद बेटी होती तो उसे यह कहकर तसल्ली दे दी जाती है कोई बात नहीं अगली बार बेटा ही होगा। यह कोई जानने की कोशिश नहीं करता कि उसे बेटे की चाह है भी या नहीं, बस उस पर अपनी उम्मीदें थोप दी जाती है। अगर मां गलती से कह भी दे कि मुझे बेटी ही चाहिए तो उसका मुंह बंद करवा दिया जाता है। हैरानी की बात तो यह है घर की महिलाएं ही बेटी ना होने की दुआ करती हैं।
महिलाएं ही है महिलाओं की दुश्मन
इस तरह की महिलाएं यह क्यों भूल जाती हैं कि वह खुद भी किसी की बेटी रही हैं, अगर उनके मां- बाप भी उन्हें जन्म से पहले मार देते तो आज वह अपना परिवार कैसे चलाती। वह जाने- अनजाने में एक लड़की की मां के साथ कुछ ऐसा कर देती है जिसे वह ताउम्र भूला नहीं पाती। पहली लड़की तक तो फिर भी ठीक है अगर वह महिला दूसरे बच्चे के बारे में सोच रही है तो वो उसके लिए किसी जंग से कम नहीं होता।
9 महीने डर में रहती है मां
उसे कह दिया जाता है कि कुछ भी हो इस बार तो बेटा ही होनी चाहिए। उसे तरह- तरह के रास्ते दिखाए जाते हैं और कहा जाता है कि ये सब करके उसे बेटा ही पैदा होगा। कुछ महिलाओं के मन में भी यही डर पैदा हो जाता है कि अगर दूसरी बेटी हो गई तो समाज उसे किस नजर से देखेगा उसे वो सम्मान नहीं मिलेगा जो एक बेटे की मां को मिलता है। पूरे 9 महीने वह इसी कसमकंजस में निकाल देती है कि अगर बेटा ना हुआ तो उसके साथ क्या होगा।
दूसरी बेटी पर अफसाेस जताता है समाज
समाज क्यों नहीं समझ पा रहा है कि बेटा या बेटी पैदा करना मां के हाथ में नहीं है। पर फिर भी लोग महिलाओं पर बेटे पैदा करने का दबाव डालते रहते हैं। अगर किसी महिला की दूसरी औलाद भी बेटी हो जाती है तो उस घर में मानो मातम छा जाता है। आस- पास के लोग बधाई देने के बदले अफसोस जताने लगते हैं। कहा जाता है बुरा हुआ लड़का होता तो परिवार पूरा हो जाता। ऐसे लोगों से हमारा कहना है कि लड़कियों से भी तो परिवार पूरा होता है बल्कि वह तो आगे जाकर दो घरों को संभालती हैं।
लड़को को लेकर यह है समाज की सोच
कुछ लोगों काे लगता है कि लड़का वंश को आगे बढ़ता है और बुढ़ापे का सहारा बनता है। पर इस बात की क्या गरंटी है कि लड़का आगे चलकर मां- बाप का सहारा बनेगा, आज कल के माहौल को देखकर तो यह कहना बहुत मुश्किल है। हम यह नहीं कह रहे कि लड़के गलत हैं, हमारा कहना यह है कि लड़कियों के मां- बाप होना गलत नहीं है, दुनिया को यह समझना होगा कि बेटा हो या बेटी घर में खुशियों तो बच्चों से ही होती है। इसलिए भगवान के तोहफे को स्वीकारो और जो उन्होंने भेजा है उसका सम्मान करो।