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'मुसलमान ही बनाएंगे ठाकुर जी  के वस्त्र और मुकुट...' Banke Bihari मंदिर ने नहीं मानी ‘मुस्लिम बहिष्कार’ की मांग

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 30 Apr, 2025 09:24 AM
'मुसलमान ही बनाएंगे ठाकुर जी  के वस्त्र और मुकुट...' Banke Bihari मंदिर ने नहीं मानी ‘मुस्लिम बहिष्कार’ की मांग

नारी डेस्क: पहलगाम हमले के बाद जहां हिंदू- मुस्लिम के बीच  तनाव पैदा हो गया है तो वहीं दूसरी तरफ वृंदावन के प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर ने पूरे समाज का एकता का कड़ा संदेश दे दिया है। मंदिर में काम करने वाले मुसलमानों का बहिष्कार करने के हिंदुत्व समूहों के सुझाव को खारिज कर दिया गया है। हिंदूवादी संगठन ने आग्रह किया था कि मथुरा और वृंदावन में हिंदू दुकानदार और तीर्थयात्री अल्पसंख्यक समुदाय के साथ व्यापार न करें।
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बांके बिहारी के पुजारी और मंदिर की प्रशासन समिति के सदस्य ज्ञानेंद्र किशोर गोस्वामी ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा यह कदम व्यावहारिक नहीं है और मंदिर के संचालन में अपनी सेवाएं देने वाले मुसलमानों की प्रमुख भूमिका है। उन्होंने कहा- मुसलमानों, खासतौर पर कारीगरों और बुनकरों का यहां गहरा योगदान है। उन्होंने दशकों से बांके बिहारी के कपड़े बुनने में अहम भूमिका निभाई है, उनमें से कई लोग बांके बिहारी में गहरी आस्था रखते हैं और मंदिर भी जाते हैं’।

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दरअसल  इन संगठन ने मुस्लिम दुकानदारों से व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर मालिक का नाम लिखने के लिए भी कहा। परिषद ने मांग की है कि बांके बिहारी के मामलों से मुसलमानों को अलग रखा जाए। गोस्वामी ने कहा कि वृंदावन में हिंदू और मुसलमान शांति और सद्भाव के साथ रहते हैं। बता दें कि वृंदावन में भगवान के कपड़े और मुकुट बनाने के साथ- साथ मुस्लिम समुदाय के संगीतकार विशेष अवसरों पर पारंपरिक वायु वाद्य यंत्र नफीरी बजाते हैं। वहीं मुस्लिम दुकानदारों का कहना है कि जारियों के रुख से उन्हें बहुत राहत मिली है। 

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वहीं दूसरी तरीह  अक्षय तृतीया पर्व के मद्देनजर  मथुरा के मंदिरों में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गयी है और यातायात के व्यापक प्रबंध किए गए हैं। बांके बिहारी मंदिर के पुजारी ज्ञानेंद्र किशोर गोस्वामी ने कहा- ‘‘भक्त सुबह बिहारी जी महाराज के चरण कमलों में पूजा करते हैं और शाम को सर्वांग दर्शन करते हैं, जो साल में एक बार मिलने वाला एक दुर्लभ अवसर है।'' उन्होंने कहा- ‘‘इस दिन बांके बिहारी महाराज पीतांबरी (पीले रंग की पोशाक) और पायल पहनते हैं, यह परंपरा स्वामी हरिदास द्वारा शुरू की गई थी।'' 
 

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