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संघर्ष और सहनशीलता का दूसरा नाम है नारी- स्वर्ण ग्रोवर

  • Updated: 29 Mar, 2014 09:22 AM
संघर्ष और सहनशीलता का दूसरा नाम है नारी- स्वर्ण ग्रोवर

आज की नारी चाहे दफ्तर में रिवाल्विंग चेयर पर बैठ सारी दुनिया को अपनी उंगलियों पर नचा रही हो या फिर घर-गृहस्थी संभाल रही हो, उसे अपनी पहचान बनाने और खुद को साबित करने के लिए संघर्ष करना ही पड़ता है। सहनशीलता की यह देवी अपने घर-परिवार और दफ्तर की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए आगे बढ़ती है और अन्य महिलाओं के लिए उदाहरण बन कर उन्हें प्रोत्साहित करती है।


गोराया की रहने वाली लेखिका स्वर्ण ग्रोवर ने एक ऐसे स्कूल की शुरूआत की जहां उन्होंने बच्चों को खुले वातावरण में शिक्षित करने का बीड़ा उठाया। इसके साथ ही ज्वलंत मुद्दों पर कई लेख व कविताएं लिख कर नाम ही नहीं कमाया बल्कि कैंसर जैसी घातक बीमारी से पीड़ित अपने पति जे.पी. ग्रोवर की पूरी देखभाल के लिए संघर्ष भी किया।

जब उन्हें पति की कैंसर की बीमारी के बारे पता चला तो पहले तो वह काफी मायूस हुईं लेकिन हिम्मत से उन्होंने मुश्किलों का सामना किया। मुश्किलें भी ऐसी कि चारों ओर से घेरा डाल लिया हो। स्कूल संभालने की चिंता, पति के कारोबार में बेटे को आगे लाने की चिंता और इस पर पति की कैंसर की आखिरी स्टेज पर उनकी केयर करने की चिंता, लेकिन उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा। पति को संभाला और उनमें जीने की तमन्ना जगाई। कैंसर की बीमारी पर गहराई से सर्च कर इसे समझा और कैंसर की बीमारी से लोगों को जागरूक करने संबंधी कई लेख भी लिखे।

जीते टेलैंट कंपीटीशन
स्वर्ण ग्रोवर ने अपने स्कूल व कॉलेज के समय जिला स्तर व राज्य स्तर तक विविध कार्यक्रमों में भाग लिया। वह निबंध, वाद-विवाद, स्लोगन, कविता की कई प्रतियोगिताओं में शामिल हुईं। उन्होंने एक राज्य स्तरीय कविता प्रतियोगिता में भाग लिया था जिसमें उन्हें प्रथम पुरस्कार यानी आठ हजार की राशि से सम्मानित किया गया था। उस समय आठ हजार की काफी अहमियत थी। इस राशि से जरूरतमंद बच्चों के लिए कुछ कर गुजरने का ख्याल उनके मन में आया। उन्होंने सोचा कि इस राशि से एक ऐसे स्कूल की शुरूआत की जाए जहां खुले वातावरण में बिना किसी दबाव के बच्चे पढ़ाई कर सकें। धीरे-धीरे स्कूल की स्ट्रैंथ भी
बढऩे लगी। कई भाषाओं में एम.ए., बी.एड स्वर्ण ग्रोवर ने अपनी तीनों बेटियों व बेटे को भी संस्कारों से परिपूर्ण किया।

लड़ी कैंसर से लड़ाई
अपने स्कूल को आगे ले जाने के साथ अपने पति के स्वास्थ्य को लेकर वह बेहद गंभीर थीं। चुनौतियां सिर पर थीं। लेकिन वह उन्हें स्वीकार करने के लिए हमेशा तैयार रहीं। कई जगह पति का इलाज करवाया और मुसीबतों का भी डटकर सामना किया। हालांकि वक्त ने साथ न दिया और पति ने भी साथ छोड़ दिया। पूरी तरह से टूट कर भी फिर से हिम्मत जुटाई और खुद को संभालते हुए फिर से दूसरों के लिए कुछ गुजरने की तमन्ना जागी।

उन्होंने कैंसर बीमारी पर एक किताब लिखने की सोची है। उनका उद्देश्य है कि इस किताब को पढ़ कर इस बीमारी से पीड़ित लोगों में नई स्फूर्ति का एहसास आए और डट कर इस बीमारी का सामना करने की शक्ति का प्रवाह हो।

गृहस्थी संभालना भी है बड़ा काम
उनके अनुसार एक तरफ तो ऐसी महिलाएं हैं जो पूरी दुनिया को बदलने का दम रखती हैं और दूसरी ओर ऐसी महिलाएं भी हैं जो शिक्षित होने के बावजूद घर संभालती हैं, लेकिन उन्हें भी निराश होने की जरूरत नहीं है क्योंकि घर संभालना भी एक बड़ा काम है। घर-परिवार में बच्चों को सही शिक्षा देकर उन्हें अच्छा नागरिक बनाने में भी महिलाओं का ही हाथ है। घरेलू महिलाएं भी अपने खाली समय का सदुपयोग कर सकती हैं।

संस्कारों की नींव से संवरेगा बच्चों का भविष्य
आए दिन गैंगरैप जैसी घटनाएं और मासूम बच्चियों के साथ घिनौने अपराधों ने आज के पेरैंट्स को लड़कियों की सुरक्षा को लेकर ङ्क्षचता में डाल दिया है। उनकी यह चिंता जायज भी है क्योंकि महिला व बाल विकास मंत्रालय की ओर से मिली रिपोर्ट के मुताबिक 50 प्रतिशत से अधिक बच्चयां यौन शोषण का शिकार होती हैं। संस्कार आधारित शिक्षा ही ऐसी घटनाओं को रोकने का एकमात्र साधन है। संस्कार शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा बनने ही चाहिएं। स्कूल व कॉलेज लैवल पर इसकी शुरूआत होनी चाहिए।

चुनौतियों को जिंदगी के हर मोड़ पर स्वीकार करें

जिंदगी कांटों से भरी पड़ी है, कांटों को चुन कर ही हम अपने लिए आसान रास्ते बना सकते हैं। महिलाओं को संदेश देते हुए वह कहती हैं कि चुनौतियां जो भी हों उनसे डरो नहीं, उन्हें स्वीकार करो और हर चुनौती का डट कर मुकाबला करो।

                                                                                                                              —मीनू कपूर, लुधियाना छाया : राकेश

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