भागदौड़ वाली बिजी लाइफस्टाइल में जहां लोग आजकल ज्यादा फ्राइड फूड और शुगर इनटेक की वजह से डायबिटीज जैसी लाइलाज बीमारी का शिकार हो रहे हैं, वहीं अब न्यू इंगलैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक रिपोर्ट ने चौंकाने वाला खुलासा किया है। आमतौर में वैसे तो डायबिटीज की रोकथाम के लिए दवा नहीं होती है, पर अब एक स्टडी में पता चला है कि गठिया के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली दवा डायबिटीज टाइप 1 की बढ़ने से रोकने में कारागार है। मेलबर्न में सेंट विंसेंट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च ने इस बात का दावा किया है।
इस दवा से शरीर को होता है इंसुलिन सुरक्षित ढंग से संरक्षित
शोधकार्ताओं ने पाया की गठिया में इस्तेमाल की जाने वाली दवा बारिसिटिनिब (baricitinib) शरीर में पैदा होने वाले इंसुलिन को बहुत ही प्रभावी ढंग से संरक्षित (कंट्रोल) करती है। स्टडी में ये पाया गया की जिन लोगों ने डायबिटीज होने के 100 दिन के अंदर ये दवा लेनी शुरु कर दी, उनमें टाइप 1 डायबिटीज की प्रगति काफी हद तक रुक गई।
क्या है टाइप 1 डायबिटीज
टाइप 1 डायबिटीज एक प्रकार का रोग है, जिसमें इम्यून सेल्स आपके pancreas यानि अग्नाशय में मौजूद बीटा सेल्स को नुकसान पहुंचाती हैं। जिससे बीटा सेल्स पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन पैदा नहीं कर पाते हैं। जब शरीर में इंसुलिन का उत्पादन कम होता है तो खून में मौजूद ग्लूकोज से शक्ति प्राप्त नहीं हो पाती है। जिससे खून और यूरीन में ग्लूकोज का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ जाता है और ये डायबिटीज का रूप ले लेता है। ये ज्यादातर बच्चों और कम उम्र के लोगों में ही पाया जाता है।
एसवीआई के प्रोफेसर का कहना है कि,'जब टाइप 1 डायबिटीज को पहली बारी diagnose किया जाता है तब इंसुलिन- उत्पादक कोशिकाएं पर्याप्त संख्या में मौजूद होती है। हम देखना चाहते थे कि क्या हम प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा इन कोशिकाओं और ज्यादा नष्ट होने से बचा सकते हैं।'
91 लोगों पर की गई रिसर्च
बता दें इस स्टडी में 91 लोगों ने भाग लिया था, जिसमें में 60 लोगों को बारिसिटिनिब और 31 लोगों को प्लेसिबो दिया गया था। डायबिटीज टाइप- 1 से पीड़ित इन लोगों के 100 दिनों के भीतर ही परीक्षण शुरु किए थे। स्टडी में पाया गया कि टाइप 1 डायबिटीज वाले जिन लोगों को बारिसिटिनिब दवा दी गई, उन्हें इलाज के लिए काफी कम इंसुलिन की जरूरत पड़ी। जबकि जो लोग टाइप- 1 डायबिटीज से पीड़ित होते हैं, उन्हें दिन- रात अपने अपने ग्लूकोज लेवल की निगरानी रखनी पड़ती है। ऐसे में ये खोज मेडिकल की फील्ड में काफी क्रांतिकारी है।