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शकुंतला देवी को कैसे मिला 'ह्यूमन कंप्यूटर' का खिताब, कंप्यूटर की भी पकड़ ली थी गलती

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 28 Jul, 2020 02:09 PM
शकुंतला देवी को कैसे मिला 'ह्यूमन कंप्यूटर' का खिताब, कंप्यूटर की भी पकड़ ली थी गलती

विद्या बालन स्टारर फिल्म 'शकुंतला देवी' इन दिनों खूब चर्चा में है। यह फिल्म 'ह्यूमन कम्प्यूटर' शकुंतला देवी की असल जिंदगी पर बनी है, जिन्होंने कप्यूटर तक की गलत पकड़ ली थी। शकुंतला देवी एक महान गणितज्ञ थीं, जिनका दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता था। जिस मैथ्स से बच्चों से लेकर बड़े तक दूर भागते हैं वही मैथ शंकुतला देवी की सबसे अच्छी दोस्त थी।

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शकुंतला देवी को कैसे मिला 'ह्यूमन कंप्यूटर' का खिताब

दरअसल, 1950 में बीबीसी लंदन के इंटरव्यू के दौरान शकुंतला देवी से गणित का एक मुश्किल सवाल पूछा गया था। मगर, उन्होंने कंप्यूटर द्वारा पूछे गए प्रश्न को ही गलत बताया। पहले तो किसी को भी उनकी बात पर यकीन नहीं हुआ लेकिन जब अगले दिन वह सही साबित हुई तो उन्हें 'ह्यूमन कंप्यूटर' का टाइटल दे दिया गया।

गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज नाम

हिसाब-किताब तेज और जबरदस्त कैलकुलेशन तकनीक के चलते शंकुतला देवी का नाम 1982 में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी शामिल किया गया है।

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नहीं मिली औपचारिक शिक्षा

सर्कस में ट्रैपीज आर्टिस्ट होने के कारण शंकुतला के पिता मात्र 2 रूपए फीस भी नहीं भर सकते थे इसलिए वह कभी औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाई। एक बाद उन्होंने मैसूर यूनिवर्सिटी में अंकगणित क्षमताओं का बेहतरीन प्रदर्शन दिखाया, जिसके बाद वह फेमस हो गई और लंदन में रहने लगी।

कैल्कुलेशन रोड शो से हुईं लोकप्रिय

सिर्फ 3 साल की उम्र में ही शकुंतला फटा-फट नंबर याद कर लेती थी। जब उनके पिता ने बेटी का टैलेंट देखा तो वह सर्कस की नौकरी छोड़ शकुंतला के साथ कैल्कुलेशन का रोड शो करने लगे।

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इंदिरा गांधी के खिलाफ लड़ा था चुनाव

अपनी मेहनत के दम पर दुनिया में नाम कमाने वाली शंकुतला देवी इंदिरा गांधी को चेलैंज दे चुकीं है। दरअसल, वह साल 1980 लोकसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के साथ साउथ मुंबई व तेलंगाना चुनाव में खड़ी हुई थी। इसी सीट के लिए उस समय इंदिरा गांधी भी इसी सीट से चुनाव लड़ रही थी। अपने एक बयान में उन्होंने यहां तक कह डाला था कि वह लोगों को इंदिरा गांधी से बचाना चाहती हैं। हालांकि चुनाव में वह 9वें नंबर पर रही थीं।

समलैंगिकता पर लिखी किताब

अपने पति से तलाक लेने के बाद वह अपनी बेटी अनुपमा बनर्जी के साथ रहने लगी। साल 1977 में उन्होंने समलैंगिकता ‘वर्ल्ड ऑफ होमोसेक्शुल्स' नामक किताब भी लिखी थी। चूंकि उस दौर में लोग 'होमोसेक्शुएलिटी' पर खुलकर बात नहीं करते थे इसलिए किताब के लिए जहां कुछ लोगों ने उनकी आलोचना की वहीं कुछ लोग उनके पक्ष में खड़े थे।

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