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श्राद्ध के दौरान गाय, कौवा और कुत्ते क्यों होते हैं खास? जानें श्राद्ध से जुड़े कुछ अनजाने रहस्य

  • Edited By Priya Yadav,
  • Updated: 17 Sep, 2025 04:45 PM
श्राद्ध के दौरान गाय, कौवा और कुत्ते क्यों होते हैं खास? जानें श्राद्ध से जुड़े कुछ अनजाने रहस्य

 नारी डेस्क: सनातन धर्म में श्राद्ध का बहुत महत्व है। इस दौरान पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए गाय, कौवा और कुत्ते को भोजन अर्पित करने की परंपरा चली आ रही है। माना जाता है कि इन जीवों को भोजन देने से पितर तृप्त होते हैं और परिवार को आशीर्वाद देते हैं। लेकिन आजकल खासकर शहरी इलाकों में कौवों की संख्या कम होती जा रही है, जिससे यह परंपरा खतरे में नजर आने लगी है। आइए जानते हैं श्राद्ध से जुड़े इन जीवों की भूमिका और उनके गायब होने के पीछे की वजहें।

गाय का महत्व

हिंदू धर्म में गाय को सबसे पवित्र माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है। श्राद्ध के दौरान गाय को गुड़ या हरा चारा खिलाने से पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है। इसलिए गाय को पूजा का प्रमुख स्थान दिया गया है।

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कौवे की भूमिका

गरुड़ पुराण में कौवे को यमराज का संदेशवाहक बताया गया है। श्राद्ध के समय कौवे को भोजन अर्पित करना आवश्यक माना गया है। मान्यता है कि जब कौआ भोजन ग्रहण करता है, तो वह पितरों की आत्मा का प्रतीक होता है और पितर आशीर्वाद देते हैं। इसलिए कौवे को पितृ पक्ष में खास महत्व दिया जाता है। कुत्ते को यमराज का दूत और काल भैरव की सवारी माना गया है। श्राद्ध के दौरान कुत्ते को भोजन देने से पितरों का मार्ग सुरक्षित होता है और अकाल मृत्यु जैसी बुरी घटनाओं से बचाव होता है। इसलिए कुत्ते को भी इस पर्व में भोजन अर्पित किया जाता है।

कौवों के गायब होने का कारण

शहरों में अब कौवे लगभग गायब हो चुके हैं। पहले श्राद्ध पक्ष में कौवे हर छत पर दिखाई देते थे, लेकिन आज शहरीकरण, प्रदूषण, और कीटनाशकों के कारण उनकी संख्या लगातार घटती जा रही है। मोबाइल टावरों की किरणें, हरियाली का कम होना और प्राकृतिक आवासों का नष्ट होना भी इनके गायब होने के बड़े कारण हैं। इससे न सिर्फ ये जीव प्रभावित हो रहे हैं, बल्कि हमारे पर्यावरण और खेती पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है।

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पर्यावरण और कृषि पर असर

कौवे खेतों के छोटे कीड़े-मकोड़े खाकर फसल की रक्षा करते हैं। वे मृत पशुओं को खाकर वातावरण को साफ भी रखते हैं। यदि कौवों की संख्या घटती है, तो कीट नियंत्रण में कमी आती है, जिससे फसलें खराब होती हैं और बीमारियों का खतरा बढ़ता है।

श्राद्ध में गाय, कौवा और कुत्ते की भूमिका सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि पर्यावरणीय और पारिस्थितिक भी है। इन जीवों की संख्या घटने से न केवल हमारी संस्कृति पर असर पड़ रहा है, बल्कि पर्यावरण और कृषि क्षेत्र को भी नुकसान हो रहा है। इसलिए हमें इनके संरक्षण और प्राकृतिक आवास को बचाने की जरूरत है ताकि ये परंपराएं और पर्यावरण दोनों सुरक्षित रह सकें।
 

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