नवरात्रि के धूम पूरे देश में देखने को मिल रही है। देश के हर के कोने में अलग तरीके से इस त्योहार का मजा लिया जाता है। कहीं दुर्गा मां की पूजा की जाती है, मेले लगते हैं, ड़डिया खेला जाता है। वहीं विजय दशमी वाले दिन रावण का पुतला जलाया जाता है जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। लेकिन जब बात हिमाचल की आती है तो यहां दशहरा थोड़े अलग अंदाज में मनाया जाता है। यहां पर रावण का पुतला नहीं जलाया जाता है , बल्कि दशहरा के मौके देवी- देवता भी धरती पर उतरते हैं और लोगों के साथ दशहरा मनाते हैं। आइए आपको बताते हैं कल्लू के इस अनोखे दशहरा के बारे में....
दुनिया भर में फेमस है कल्लू का दशहरा
कल्लू का दशहरा देश में ही पूरी दुनिया में बहुत फेमस है और इसे देखने के लिए लोग दूर से दूर से हिमाचल प्रदेश पहुंचते हैं। दरअसल पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कुल्लू दशहरा में देवताओं का मिलन होता है और इसलिए आज भी उनके रथों को खींचते हुए ढोल- नगाडों की धुनों पर नाचते हुए लोग मेले में आते हैं। 7 दिनों तक चलने वाले इस दशहरे की शुरुआत आश्विन मास की दशमी तिथि से होती है जो कि इस साल 24 अक्टूबर को है, और इसी दिन कुल्लू दशहरा या कुल्लू मेला शुरू होगा।
ये है कुल्लू दशहरे का महत्व
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में मनाया जाने वाला कल्लू दशहरा की शुरुआत दशमी तिथि यानि 24 अक्टूबर से होगी और ये 30 अक्टूबर को समाप्त होगा। जहां देशभर में दशहरे के दिन रावण दहन के साथ त्योहार पूरा हो जाता है, वहीं कुल्लू दशहरा रावण दहन नहीं किया जाता बल्कि इस मेले में देवी- देवता का मिलन होता है।
मेले में आते हैं देवी- देवता
कहा जाता है कि कुल्लू के दशहरे में करीब देवलोक से देवी- देवता धरती पर आते हैं। फिर वहां की परंपरा के हिसाब से कुल्लू दशहरे के मेले में भगवान रघुनाथ की भव्य रथयात्रा के साथ दशहरा शुरू होता है। इसके साथ ही सभी स्थानीय देवी- देवता ढोल- नगाड़ों की धुनों पर यहां आते हैं। यहां के हर एक गांव के एक अलग देवता होते हैं, जिन्हें इस मेले में शामिल होने के लिए रथों से लाया जाता है। बता दें कि कुल्लू दशहरा ढालपुर मैदान में पहली बार 1662 से मनाया गया था और तभी से हर साल इस पर्व को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।