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कभी रेस्टोरेंट में जाने से आती थी झिझक, आज चला रहीं हैं खुद की कैंटीन

  • Edited By Priya verma,
  • Updated: 06 Sep, 2018 02:22 PM
कभी रेस्टोरेंट में जाने से आती थी झिझक, आज चला रहीं हैं खुद की कैंटीन

औरतों को रसोई की रानी कहा जाता है क्योंकि लोगों की सोच होती है कि घर गृहस्थी और खाने का काम ही वे अच्छे से संभाल सकती है। अगर महिला में कोई का करने का आत्मविश्वास पैदा हो जाए तो वे इस बात को पूरी तरह से झूठा साबित कर देती हैं कि औरतें आर्थिक रूप से पति की मदद नहीं कर सकती। आज हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के एक गांव में रहने वाली साधना कश्यप की। जिनका रहन-सहन इतना सादा था कि वे रेस्टोरेंट में जाने से कतराती थी। आज वे अपनी साथी 9 महिलाओं के साथ  सरगुजा जिले के अंबिकापुर कलेक्ट्रेट में कैंटीन चलाती हैं।

 

साधना और उसकी साथी महिलाओं ने तत्कालीन कलेक्टर की मदद से इस काम को शुरू करने का फैसला लिया। इस काम को करने की पहल राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के तहत बिहान स्कीम के अंतर्गत की गई। जो महिलाएं घर से कम ही बाहर जाती थीं, बाहर की दुनिया से उनका किसी तरह का कोई लेन-देन नहीं था। काम करने के जज्बे ने उन्हें घर से बाहर निकलने का हौसला दिया। 

 

आज साधना और उनका ग्रुप अंबिकापुर कलेक्ट्रेट में कैंटीन चला रहा है जो वहां की फेमस कंटीन में से एक है। इस काम को 4 साल पहले करने की पहल बिहान स्कीम के तहत मिली थी। जिसमें महिलाओं को उनकी पसंद का काम शुरू करने की ट्रेनिंग दी जाती है। कलेक्टर से साधना को कैंटीन शुरू करने का मौका मिला जिसमें सभी औरतों एक ही पृष्ठ भूमि की थी। 

 

साधना का इस बारे में कहती हैं, हम इस कैंटीन से लाभ कमा रहे हैं और इसे आगे भी चलाना चाहते हैं।' जो लोग यह सोचते थे कि ये महिलाएं अपना काम आगे नहीं चला पाएंगी वह अब उनकी तारीफ कर रहे हैं। इससे साधना के साथ पूरे ग्रुप की महिलाओं को आर्थिक लाभ भी हो रहा है। जिससे पारिवार की जरूरतें पूरी होने के साथ-साथ इन औरतों के आत्मविश्वास में भी बहुत वृद्धि हुई है। 

 

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