फेफड़ों में पानी या फिर किसी तरल पदार्थ का जमा हो जाना एक स्थिति होती है। डॉक्टरी भाषा में इसे 'पल्मोनरी एडिमा' के रुप में जाना जाता है। पल्मोनरी एडिमा में फेफड़ों की छोटी-छोटी थैलियों में द्रव जमा हो जाता है जिसके कारण फेफड़े पर्याप्त मात्रा में हवा भी नहीं ले पाते। इसके कारण सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। फेफड़ों में पानी भरने पर दिल की धड़कन अनियमित होना, बैचेनी, तनाव जैसे लक्षण महसूस हो सकते हैं। इस समस्या के कई सारे कारण हो सकते हैं। ब्लड प्रेशर का बढ़ना, हार्ट फेलियर और निमोनिया इसके मुख्य कारण हो सकते हैं। आइए जानते हैं फेफड़ों में पानी क्यों भरता है और इसके लक्षण क्या हैं....
फेफड़ों में पानी भरने के लक्षण
फेफड़ों में पानी भरने पर कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। जैसे सांस लेने में कठिनाई इसका सबसे आम लक्षण माना जाता है। इसके अलावा भी इसके कुछ लक्षण होते हैं जैसे
. सांस लेने में मुश्किल
. लेटने पर सांस लेने में कठिनाई होना
. झागदार थूक
. दिल की धड़कन का अनियमित होना
. बैचेनी या घबराहट
. पैरों में सूजन
क्यों भरता है फेफड़ों में पानी?
फेफड़ों में पानी जमा हो जाना एक गंभीर समस्या हो सकती है। यह दो तरह की होती है एक 'कार्डियोजेनिक पल्मोनरी एडिमा' और 'नॉनकार्डियोजेनिक पल्मोनरी एडिमा'। इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे
हृदय संबंधी समस्याएं
दिल से जुड़ी समस्याएं भी फेफड़ों में जमा पानी का कारण हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में हृदय फेफड़ों तक सही तरीके से रक्त को पंप नहीं कर पाता है जिसके कारण फेफड़ों में रक्त न पहुंच पाने के कारण खाली जगहों में द्रव जमा हो जाते हैं। इसका असर रक्त वाहिकाओं पर पड़ता है और सांस लेना मुश्किल हो जाता है।
निमोनिया
कुछ मामलों में फेफड़ों में पानी जमा होने के लिए हृदय संबंधी समस्याएं कारण नहीं होती। ऐसे परिस्थिति में निमोनिया जैसी समस्या फेफड़ों में पानी जमा होने का एक कारण हो सकता है।
शरीर के किसी अंग खराब होने के कारण
कई बार जब शरीर का कोई हिस्सा सही तरीके से काम नहीं करता तो भी फेफड़ों में पानी या द्रव जमा हो सकता है। हृदय फेलियर, किडनी या लिवर का खराब होने इसके मुख्य कारण हो सकते हैं। लिवर सिरोसिस होने पर भी फेफड़ों में पानी जमा हो सकता है।
अन्य समस्याएं
इसके अलावा ब्लड इंफेक्शन, सूजन, धमनियों का संकुचित होना और गंभीर संक्रमण भी फेफड़ों में पानी जमा होने के कारण खराब हो सकते हैं। यह समस्या मुख्य तौर पर उन लोगों को देखने को मिलती है जिन्हें हृदय और फेफड़ों से संबंधित बीमारियां पहले से ही होती हैं।