05 DECTHURSDAY2024 9:30:00 AM
Nari

Pitru Paksha: 20 सितंबर से शुरु पितृ पक्ष, जानिए इन तिथियों का महत्व व पूजा विधि

  • Edited By neetu,
  • Updated: 18 Sep, 2021 11:38 AM
Pitru Paksha: 20 सितंबर से शुरु पितृ पक्ष, जानिए इन तिथियों का महत्व व पूजा विधि

हिंदू धर्म में व्रत, त्योहारों की तरह पितड पक्ष की तिथियों का विशेष महत्व है। ये दिन हर साल भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से प्रारंभ होते हैं। पितृ पक्ष पूरे 16 दिनों तक चलकर अमावस्या को समाप्त होते हैं। वहीं पितृ पक्ष में पहली और आखिरी तिथि बेहद खास मानी जाती है। इन दिनों में अपने पूर्वजों के निधन की तिथि के मुताबिक श्राद्ध संपन्न किया जाता है। इस साल पितृपक्ष 20 सितंबर 2021, सोमवार से शुरु होकर  06 अक्तूबर 2021, बुधवार तक चलेंगे।


मान्यता है कि इन दिनों पर पितर नीचे धरती पर आकर किसी रूप में अपने वंशजों के घर पर वास करते हैं। इसलिए उनकी आत्मा की शांति व तृप्ति करने के लिए श्राद्ध किया जाता है। ऐसे में पितर खुश होकर अपने वंशों को ढ़ेरों आशीर्वाद देते हैं। इससे घर में सुख-समृद्धि व शांति का वास होता है। अगर उन्हें तृप्त न किया जाए तो उनकी आत्मा नाराज व अतृप्त ही स्वर्ग को लौट जाती हौ। साथ ही वे अपने वंशजों को श्राप दे जाते हैं। ऐसे में अगर आप अपने घर की सुख-शांति चाहते हैं तो पितरों का श्राद्ध करके उनका आशीर्वाद जरूर लें।

PunjabKesari

चलिए जानता हैं पितृपक्ष की तिथियों के बारे में...

पूर्णिमा श्राद्ध- 20 सितंबर, 2021, सोमवार
प्रतिपदा श्राद्ध-  21 सितंबर, 2021, मंगलवार
द्वितीया श्राद्ध-  22 सितंबर, 2021, बुधवार
तृतीया श्राद्ध-  23 सितंबर, 2021, वीरवार
चतुर्थी श्राद्ध- 24 सितंबर, 2021, शुक्रवार
पंचमी श्राद्ध-  25 सितंबर, 2021, शनिवार
षष्ठी श्राद्ध-  27 सितंबर, 2021, रविवार
सप्तमी श्राद्ध-  28 सितंबर, 2021, सोमवार
अष्टमी श्राद्ध- 29 सितंबर, 2021, मंगलवार
नवमी श्राद्ध-  30 सितंबर, 2021, बुधवार
दशमी श्राद्ध-  01 अक्तूबर, 2021, वीरवार
एकादशी श्राद्ध- 02 अक्तूबर, 2021, शुक्रवार
द्वादशी श्राद्ध- 03 अक्तूबर, 2021, शनिवार
त्रयोदशी श्राद्ध-  04 अक्तूबर, 2021, रविवार
चतुर्दशी श्राद्ध- 05 अक्तूबर, 2021, सोमवार
अमावस्या श्राद्ध- 06 अक्तूबर, 2021, बुधवार

PunjabKesari

पितृपक्ष तिथियों का महत्व

हिंदू धर्म में पितृपक्ष के दौरान अपने पूर्वजों का पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म का खास महत्व है। इस तिथियों पर पितरों का श्राद्ध किया जाता है। वहीं जो लोग पितरों का श्राद्ध करना या इसकी तिथि भूल जाएं तो वे उनाक  श्राद्ध अमावस्या के दिन कर सकते हैं। इसे दिन को सर्व पितृ अमावस्या कहते हैं।

पिंडदान विधि

पिंडदान पूरी विधि अनुसार करना चाहिए। इसलिए इसे किसी विद्वान ब्रह्माण द्वारा मंत्रोच्चारण द्वारा ही करवाना चाहिए। पिंडदान गंगा नदी के किनारे किया जाता है। अगर गंगा नदी के पास जाना संभव ना हो पाए तो घर पर भी किया जा सकता है। श्राद्ध हमेशा दिन के दौरान होता है। इसमें पितरों को याद करते हुए दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके बैठे और पूजा शुरू करें। हाथ में में कुश, जल, चावल, फूल, तिल लें। फिर दोनों हाथ जोड़कर अपने पितरों का स्मरण करते हुए उन्हें आमंत्रित करें। ‘ॐ आगच्छन्तु में पितर और ग्रहन्तु जलान्जलिम’ का जप करते रहिए। उसके बाद इन सामग्री को पितरों का नाम लेते हुए जमीन पर गिराएं। इसे 5, 7 या 11 बार दोहराएं। फिर जल से तर्पण करके भोग लगाएं। इसमें पंचबली भोग यानि गाय, कुत्ते, कौवे आदि का हिस्सा अलग रख दें। इस दौरान इन पंचबली भोग को करवाते समय पितरों का सच्चे मन से स्मरण करें। साथ ही उनके श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करें। साथ ही घर की सुख-शांति व समृद्धि की प्रार्थना करें। अंत में ब्राह्मण को भोजन करवाकर उन्हें सामार्थ्य अनुसार, दान, दक्षिणा देकर सम्मान से विदा करें।

PunjabKesari

Related News