नारी डेस्क: हिंदू धर्म में श्राद्ध पितरों (पूर्वजों) की आत्मा की शांति के लिए किया जाने वाला धार्मिक अनुष्ठान है। इसका उद्देश्य पितरों की आत्मा को तृप्त करना और उनका आशीर्वाद प्राप्त करना होता है। पर्व पितृ पक्ष 17 सितंबर से शुरू होने जा रहा है, हालांकि पहले दिन का श्राद्ध 18 सितंबर को किया जाएगा, इससे पहले पूर्णिमा का श्राद्ध ऋषियों के नाम पर किया जाएगा। यानि कि पितृ पक्ष 18 सितंबर से 2 अक्टूबर तक चलेगा।
श्राद्ध की सभी तिथियां
17 सितंबर मंगलवार पूर्णिमा का श्राद्ध (ऋषियों के नाम से तर्पण)
18 सितंबर बुधवार प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध (पितृपक्ष आरंभ)
19 सितंबर गुरुवार द्वितीया तिथि का श्राद्ध
20 सितंबर शुक्रवार तृतीया तिथि का श्राद्ध
21 सितंबर शनिवार चतुर्थी तिथि का श्राद्ध
22 सितंबर शनिवार पंचमी तिथि का श्राद्ध
23 सितंबर सोमवार षष्ठी और सप्तमी तिथि का श्राद्ध
24 सितंबर मंगलवार अष्टमी तिथि का श्राद्ध
25 सितंबर बुधवार नवमी तिथि का श्राद्ध
26 सितंबर गुरुवार दशमी तिथि का श्राद्ध
27 सितंबर शुक्रवार एकादशी तिथि का श्राद्ध
29 सितंबर रविवार द्वादशी तिथि का श्राद्ध
30 सितंबर सोमवार त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध
1 अक्टूबर मंगलवार चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध
2 अक्टूबर बुधवार सर्व पितृ अमावस्या
श्राद्ध का सही समय
श्राद्ध का समय दिन के अपराह्न (दोपहर 12 बजे के बाद) से लेकर तीसरा पहर (3 से 4 बजे तक) के बीच करना उत्तम माना जाता है। इस समय को 'कुतुप काल' कहा जाता है, और इसे पितरों को तर्पण करने का सबसे शुभ समय माना जाता है। अमावस्या तिथि का विशेष महत्व होता है, क्योंकि इस दिन सभी पितरों के लिए सामूहिक श्राद्ध किया जा सकता है। अगर आपको पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो, तो आप अमावस्या के दिन श्राद्ध कर सकते हैं। यदि आप किसी कारणवश पितृ पक्ष में श्राद्ध नहीं कर पाते हैं, तो आप किसी भी संकल्पित श्राद्ध या अमावस्या पर श्राद्ध कर सकते हैं।
पितृदोष से बचने के उपाय
पितृदोष उस स्थिति को दर्शाता है जब पूर्वजों की आत्मा किसी कारणवश अशांत होती है, और इस कारण व्यक्ति के जीवन में बाधाएं आ सकती हैं। पितृदोष से बचने और पितरों को प्रसन्न करने के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं:
श्राद्ध कर्म और तर्पण
श्राद्ध कर्म पितरों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए सबसे प्रभावी उपाय है। श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाना, दान देना, और जल-तर्पण करना आवश्यक माना जाता है। तर्पण का अर्थ है पवित्र जल अर्पण करना। इसे प्रतिदिन या श्राद्ध के दिनों में करना पितरों को तृप्त करता है और पितृदोष से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है।
गाय को भोजन कराएं
गाय को भोजन कराना और उसकी सेवा करना पितृदोष से बचने का एक और प्रभावी उपाय है। इसके साथ ही, कौवे को भी भोजन देना शुभ माना जाता है क्योंकि इसे पितरों का प्रतीक माना जाता है।
पीपल के पेड़ की पूजा
पीपल के पेड़ को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है और इसे पितरों का वास माना जाता है। पितृदोष से बचने के लिए पीपल के पेड़ की पूजा करें और उसके नीचे दीपक जलाएं।
पितरों के लिए प्रार्थना और मंत्र
प्रतिदिन पितरों की शांति के लिए प्रार्थना करें और मंत्रों का जाप करें। पितृ सूक्त या गायत्री मंत्र का पाठ पितरों की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है।
पितृदोष निवारण के लिए विशेष मंत्र
ॐ पितृभ्य: स्वधा, ॐ पितृभ्य: स्वधा।
की शांति के लिए इस मंत्र का जाप करें।
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रुद्राभिषेक
रुद्राभिषेक कराना पितृदोष के निवारण के लिए एक प्रभावी उपाय है। इसमें भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है और पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है।
नियमित पिंडदान और तर्पण
जिन परिवारों में पितृदोष है, उन्हें नियमित रूप से पिंडदान और तर्पण करना चाहिए। पिंडदान से पितरों की आत्मा को मोक्ष मिलता है और पितृदोष दूर होता है।
पितृदोष से बचने और पितरों की कृपा प्राप्त करने के लिए नियमित श्राद्ध, तर्पण, और दान करना आवश्यक होता है। पितृ पक्ष का समय श्राद्ध के लिए सबसे उत्तम होता है, लेकिन अगर आप इसे नहीं कर पाते हैं, तो अमावस्या का दिन भी श्राद्ध और तर्पण के लिए उत्तम होता है।