नारी डेस्क: अब तक अक्सर ऐसा माना जाता रहा है कि वीडियो गेम्स बच्चों के लिए हानिकारक होते हैं, लेकिन एक नई रिसर्च ने इस सोच को पलट कर रख दिया है। नीदरलैंड, जर्मनी और स्वीडन के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया एक अध्ययन बताता है कि वीडियो गेम अगर सही तरीके से और सीमित समय के लिए खेले जाएं, तो बच्चों की सोचने-समझने की क्षमता और बुद्धिमत्ता बढ़ सकती है।
रिसर्च में क्या निकला सामने?
इस स्टडी में लगभग 9,855 बच्चों (9 से 10 साल की उम्र के) पर रिसर्च की गई। इन बच्चों के स्क्रीन टाइम और मानसिक गतिविधियों की मॉनिटरिंग की गई। अध्ययन में पाया गया कि जिन बच्चों ने रोज़ाना एक घंटे तक वीडियो गेम खेलना बताया, उनके IQ (बुद्धिलब्धि) में औसतन 2.5 अंकों तक की वृद्धि देखी गई। ये नतीजे एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक पत्रिका Scientific Reports में प्रकाशित किए गए हैं।

स्क्रीन टाइम और डिजिटल आदतों का विश्लेषण
शोधकर्ताओं ने यह जानने की कोशिश की कि बच्चे अपना स्क्रीन टाइम कैसे बिताते हैं। ज़्यादातर बच्चों ने बताया कि वे हर दिन करीब ढाई घंटे टीवी या ऑनलाइन वीडियो देखते हैं और लगभग एक घंटा वीडियो गेम खेलने में बिताते हैं। इसके बाद वैज्ञानिकों ने उनके आईक्यू, पढ़ाई में समझ, स्मृति (memory), आत्म-नियंत्रण जैसी क्षमताओं की जांच की और पाया कि वीडियो गेम खेलने वाले बच्चों में सकारात्मक संज्ञानात्मक (cognitive) बदलाव नज़र आए।
वीडियो गेम्स से मिल रहा है रचनात्मकता को नया मंच
आजकल के वीडियो गेम सिर्फ खेलने के लिए नहीं रह गए हैं। ये कहानी सुनाने, रणनीति बनाने और विश्लेषण करने का ज़रिया बन गए हैं। बच्चे अपने किरदार (character) का लुक, रोल और खेलने का तरीका खुद तय करते हैं, जिससे उनमें आत्मनिर्भरता और रचनात्मकता बढ़ती है। कुछ गेम्स तो ऐसे भी हैं जो टीमवर्क और सहयोग को बढ़ावा देते हैं। यानी, गेम्स अब केवल टाइम पास नहीं, बल्कि सीखने और खुद को बेहतर बनाने का ज़रिया भी बन चुके हैं।

क्या रखें ध्यान?
हालांकि, वीडियो गेम्स के फायदे तभी मिल सकते हैं जब कुछ जरूरी बातों का ख्याल रखा जाए-स्क्रीन टाइम को सीमित रखना बेहद जरूरी है। गेम्स की सेटिंग्स इस तरह से करें कि बच्चे केवल अपने दोस्तों से ही जुड़ सकें, अनजान लोगों से नहीं। बच्चों को ऐसे गेम्स दें जो मानसिक विकास में सहायक हों, न कि केवल हिंसा या व्यसन बढ़ाने वाले। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखें और समय-समय पर उनसे बात भी करें।
रिसर्चर का क्या कहना है?
स्वीडन के कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के न्यूरोसाइंटिस्ट टोर्केल क्लिंगबर्ग का कहना है- "हमारे अध्ययन से यह संकेत मिलता है कि वीडियो गेम्स वास्तव में बच्चों की बुद्धिमत्ता और सोचने की क्षमता को बेहतर बना सकते हैं। हालांकि, अभी और रिसर्च की ज़रूरत है कि यह शारीरिक स्वास्थ्य, नींद और स्कूल पर किस हद तक असर डालते हैं।"

इस स्टडी से साफ है कि वीडियो गेम्स को पूरी तरह से नुकसानदेह कहना अब ठीक नहीं होगा। अगर बच्चों को समझदारी से, सीमित समय और सही प्रकार के गेम्स खेलने को मिलें, तो ये उनकी मानसिक और रचनात्मक क्षमताओं को निखार सकते हैं। अब ज़रूरत है संतुलन और सही मार्गदर्शन की।