नारी डेस्क : ऐसे बहुत से कैंसर हैं जो सिर्फ महिलाओं को ही होते हैं। इन्हीं कैंसर में से एक है अंडाशय का कैंसर (Caause of Ovarian Cancer ) लेकिन इस कैंसर से समय रहते बचा जा सकता है क्योंकि इस कैंसर का इलाज ढूंढने में डाक्टरों को सफलता मिल गई हैं। चलिए इस बारे में आपको विस्तार से बताते हैं।

महिलाओं में मौत का एक बड़ा कारण
अंडाशय का हाई-ग्रेड सीरियस कार्सिनोमा (HGSC) भी ऐसा ही एक कैंसर है, जिसे महिलाओं में होने वाले कैंसर में सबसे घातक रूपों में गिना जाता है।अंडाशय का कैंसर महिलाओं में कैंसर से होने वाली मौतों के मामले में छठे नंबर पर आता है। इसकी सबसे बड़ी चुनौती यह है कि शुरुआती स्टेज में इसके लक्षण लगभग न के बराबर होते हैं और अभी तक इसके लिए कोई पूरी तरह भरोसेमंद टेस्ट मौजूद नहीं है। ज्यादातर महिलाएं डायग्नोसिस के बाद 5 साल से ज्यादा नहीं जी पातीं।
कैंसर की शुरुआती पहचान मुश्किल क्यों होती है?
HGSC कैंसर को शुरुआती स्टेज में पकड़ना कठिन है क्योंकि लक्षण बहुत हल्के या बिल्कुल नहीं होते। जब तक पेट फूलना, भूख कम होना, बार-बार पेशाब आना या वजन कम होने जैसे लक्षण सामने आते हैं, तब तक कैंसर अक्सर एडवांस स्टेज में पहुंच चुका होता है।
वैज्ञानिकों की नई खोज, कैंसर पहचानने की मिली नई चाबी
पहले यह माना जाता था कि HGSC कैंसर सीधे अंडाशय में शुरू होता है लेकिन अब शोध में पाया गया है कि यह कैंसर अक्सर फैलोपियन ट्यूब की परत (epithelium) में शुरू होता है। यहां कोशिकाओं में BRCA1, BRCA2 या TP53 जैसे जीन म्यूटेशन होने पर कैंसर बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। शुरुआती बदलाव को STIC lesion (Serous Tubal Intraepithelial Carcinoma) कहा जाता है। रिसर्च में यह भी पता चला कि Krt5 नामक जीन प्री-सिलिएटेड सेल्स में काफी एक्टिव रहता है। जब इस जीन के उच्च स्तर वाली कोशिकाओं में Trp53 और Rb1 को बंद किया गया, तो चूहों में जल्दी ही हाई-ग्रेड अंडाशय कैंसर विकसित हो गया। इससे साफ हो गया कि यही सेल्स कैंसर की जड़ हैं।

ये कैंसर कैसे फैलता है?
शुरुआत फैलोपियन ट्यूब की सतह पर होती है। ट्यूब से निकलकर अंडाशय तक पहुंचती हैं। वहां ट्यूमर बनने के बाद यह पेट के अंदर अन्य अंगों में भी फैल सकता है। परिवार में ओवरी या ब्रेस्ट कैंसर का इतिहास, BRCA1/BRCA2 जीन म्यूटेशन, देर से मेनोपॉज या पहली प्रेग्नेंसी में देरी, कभी गर्भधारण न होना, उम्र 50 वर्ष से अधिक।
वैज्ञानिकों की सफलता से भविष्य में कई संभावनाएं
जल्दी पहचान: प्री-सिलिएटेड सेल्स को पहचानकर कैंसर बनने से पहले ही पता लगाया जा सकता है।
नया इलाज: सिलियोगेनेसिस (सिलिया बनने की प्रक्रिया) को टारगेट करके कैंसर को शुरू होने से रोका जा सकता है।
बेहतर टेस्ट: Krt5 जैसे जीन को मार्कर के रूप में इस्तेमाल कर शुरुआती स्टेज में रिस्क का पता लगाया जा सकता है। बता दे कि यह स्टडी चूहों पर हुई है, लेकिन इंसानों की फैलोपियन ट्यूब की संरचना काफी मिलती-जुलती है। आगे इंसानी टिश्यू पर रिसर्च करके इस खोज को पुख्ता किया जा सकता है। अगर ये नतीजे इंसानों में भी साबित होते हैं, तो यह अंडाशय के कैंसर के खिलाफ जंग में एक बड़ी जीत हो सकती है।

अंडाश्य कैंसर के प्रति जागरूकता जरूरी
हाई-रिस्क महिलाओं में जेनेटिक टेस्टिंग कराना, डॉक्टर की सलाह पर नियमित पेल्विक जांच, कुछ मामलों में प्रिवेंटिव फैलोपियन ट्यूब हटाने की सर्जरी, स्वस्थ जीवनशैली और हार्मोनल संतुलन पर ध्यान देना चाहिए।