हर साल 12 जुलाई के दिन मलाला दिवस (Malala Day) मनाया जाता है। यह खास दिन मलाला यूसूफ़जई के जन्मदिवस के मौके पर महिलाओं को संघर्ष की प्रेरणा देने वाले दिवस के रूप में मनाया जाता है। 9 अक्टूबर, 2012 में मलाला के सिर पर गोली चलाकर उनकी हत्या करने की कोशिश की लेकिन वह मरी नहीं बल्कि महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष का प्रतीक बन गई। चलिए आपको बताते हैं कि लड़कियों की शिक्षा के लिए लड़ने वाली मलाला यूसूफ़जई...
कौन है मलाला यूसूफ़जई (Malala Yousafzai)?
यूसुफजई का जन्म 12 जुलाई, 1997 को पाकिस्तान, उत्तर-पश्चिमी खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के स्वात जिले में निम्न-मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उनके जन्म के समय परिवार के पास अस्पताल जाने के लिए भी पर्याप्त पैसा नहीं था और पड़ोसियों की मदद से यूसुफजई ने घर पर जन्म लिया। वह 11 साल की उम्र में गुल मकाई नाम से BBC उर्दू के लिए डायरी लिखती थी। इसके जरिए वह स्वात इलाके में रह रही बच्चियों की स्थिति सामने लाना चाहती थी लेकिन तब वहां तालिबान का खतरा बहुत ज्यादा था।
क्यों मनाया जाता है "मलाला डे"
16 साल की उम्र में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में लड़कियों की शिक्षा पर अपना भाषण पेश किया था, जिसके लिए यूएन मुख्यालय में मौजूद हर सदस्य ने तालियां बजाकर सरहाना की। इसी के बाद संयुक्त राष्ट्र ने मलाला यूसूफ़जई के जन्मदिवस यानि 12 जुलाई को 'मलाला डे' घोषित कर दिया।
पिता से मिली शिक्षा
मलाला पश्तो, उर्दू और अंग्रेजी भाषा जानती थी, जो उन्होंने अपने पिता जियाउद्दीन यूसुफजई से सीखी। वह एक कवि, स्कूल के मालिक, और खुद एक शैक्षिक कार्यकर्ता हैं। मलाला डॉक्टर बनना चाहती थी लेकिन बाद में उनके पिता ने उन्हें राजनेता बनने के लिए प्रोत्साहित किया।
लड़कियों की शिक्षा के लिए आंतकियों से भिड़ी
9 अक्टूबर 2012 के दिन 15 साल की मलाला यूसुफजई स्कूल से घर लौट रही कि तभी तालिबानी आतंकी बस में चढ़े और मलाला के बारे में पूछने लगे। तभी एक आंतकी ने मलाला की तरफ गोली चलाई जो उनके सिर पर जा लगी, जिससे वो बुरी तरह जख्मी हो गई।
सिर पर खाई गोली लेकिन नहीं मानी हार
मगर, मलाला का हौसला भी कम न था। उन्हें पेशावर के मिलिट्री अस्पताल में भर्ती करवाया गया लेकिन हालत में सुधार ना होने पर उन्हें ब्रिटेन, बर्मिंघम ले जाया गया। करीब 6 साल लंबे इलाज के बाद 31 मार्च, 2018 को मलाला ठीक होकर एक बार फिर स्वात घाटी लौटीं और अपने अभियान में जुट गई।
नोबेल पुरस्कार जीतने वाली सबसे कम उम्र की युवा
तालिबानी आतंकियों के हमले का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा की गई और दुनियाभर ने मलाला का साथ दिया। फिर क्या मलाला महिलाओं की आवाज बुलंद करने वाली युवा बनकर उभरीं। उनकी इस वीरता के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार और साल 2011 में अंतरराष्ट्रीय शांति नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मलाला 17 साल की उम्र में नोबेल पाने वाली सबसे युवा पुरस्कार विजेता है। 2013 में मलाला को यूरोपीय यूनियन का प्रतिष्ठित शैखरोव मानवाधिकार पुरस्कार भी मिला। इसके अलावा भी उन्हें कई अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है।