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कुल्लू में दशहरे पर स्वर्ग से धरती पर उतरेंगे देवी देवता, यहां नहीं जलाया जाता रावण का पुतला

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 01 Oct, 2025 02:07 PM
कुल्लू में दशहरे पर स्वर्ग से धरती पर उतरेंगे देवी देवता, यहां नहीं जलाया जाता रावण का पुतला

नारी डेस्क: भारत में जहां दशहरा रावण दहन के साथ समाप्त होता है, वहीं हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में यह उत्सव भगवान रघुनाथ की रथयात्रा के साथ शुरू होता है और देवी-देवताओं का मिलन होता है। यहां का शहरा विश्व प्रसिद्ध उत्सव है, जो अपनी अनोखी परंपरा और भव्यता के कारण पूरे देश और विदेश में जाना जाता है। आइए जानते हैं कुल्लू का दशहरा बाकी दशहरों से क्यों है अलग। 

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7 दिन तक चलता है दशहरा

कुल्लू दशहरा भगवान रघुनाथ (श्री राम)  की पूजा के साथ शुरू होता है।  यहां 7 दिन तक बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इसका मुख्य आकर्षण है भगवान रघुनाथजी की शोभायात्रा, जिसमें सैकड़ों देवी-देवताओं की पालकियां शामिल होती हैं। बैंड-बाजों, नृत्य और लोकधुनों के साथ सारा कुल्लू घाटी भक्तिमय माहौल में डूब जाती है। खास बात यह है कि कुल्लू दशहरे में रावण दहन नहीं होता। यहाँ यह पर्व भगवान राम और रघुनाथजी की भक्ति के रूप में मनाया जाता है।

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 17वीं शताब्दी में शुरू हुई थी ये प्रथा

इसे राजा जगत सिंह  ने 17वीं शताब्दी में शुरू किया था, जब उन्होंने भगवान रघुनाथ की मूर्ति कुल्लू में स्थापित की थी। राजा के आदेश के बाद से, कुल्लू का दशहरा भगवान रघुनाथ को समर्पित एक विशेष आयोजन बन गया। इस उत्सव में कुल्लू की घाटी के विभिन्न गांवों से देवताओं की शोभायात्रा निकाली जाती है। कुल्लू घाटी के हर गांव में एक लोक देवता होता है, और इस दशहरे के दौरान 200 से अधिक देवी-देवता अपने-अपने गांवों से रथ यात्रा के माध्यम से कुल्लू के ढालपुर मैदान में एकत्र होते हैं। यह नजारा बहुत ही दिव्य और अलौकिक होता है, जिसे देखने के लिए हजारों लोग यहां आते हैं।

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दूर- दूर से लोग इस उत्सव में होते हैं शामिल

कुल्लू दशहरा को 1972 में अंतर्राष्ट्रीय स्तर  पर मान्यता मिली और इसे अंतर्राष्ट्रीय दशहरा उत्सव  के रूप में मनाया जाता है। अब यह एक ऐसा आयोजन बन गया है जिसमें न केवल भारत से, बल्कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों से लोग भाग लेने आते हैं। इस उत्सव में हिमाचल के पारंपरिक लोक संगीत और नृत्य का भी विशेष आयोजन होता है। लोग पारंपरिक परिधानों में नाचते-गाते हैं और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद लेते हैं।  कुल्लू का दशहरा अपने धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व के कारण विश्व प्रसिद्ध है।

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