नारी डेस्क: हिंदू धर्म में साधु-संतों का अंतिम संस्कार उनके सामान्य अनुयायियों से अलग तरीके से किया जाता है। जहां आमतौर पर हिंदू धर्म में लोगों का दाह संस्कार किया जाता है, वहीं साधु-संतों को समाधि दी जाती है। इसके पीछे धार्मिक, आध्यात्मिक, और सांस्कृतिक कारण हैं। आइए जानते हैं कि ऐसा क्यों किया जाता है और इसकी प्रक्रिया क्या है।
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समाधि देने का कारण
साधु-संत अपनी पूरी जिंदगी ईश्वर की साधना और तपस्या में व्यतीत करते हैं। उनके शरीर को तपस्वी और पवित्र माना जाता है, इसलिए इसे जलाने की बजाय समाधि में रखा जाता है। यह माना जाता है कि उनका शरीर पंचमहाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) से परे हो जाता है। साधु-संत सांसारिक बंधनों और अहंकार से मुक्त हो चुके होते हैं। उनके लिए मृत्यु मोक्ष का द्वार मानी जाती है। दाह संस्कार में शरीर को जलाकर समाप्त किया जाता है, लेकिन साधुओं को समाधि देकर उनका अस्तित्व सम्मानपूर्वक संभाल कर रखा जाता है।
ऊर्जा का संरक्षण
ऐसा माना जाता है कि साधु-संतों की तपस्या और साधना से उनके शरीर में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचय होता है। इस ऊर्जा को भूमि में विलीन होने दिया जाता है ताकि यह सकारात्मक प्रभाव डाल सके। समाधि इस बात का प्रतीक है कि साधु-संत ने जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त कर ली है। उनके शरीर को संरक्षित करना उनके द्वारा किए गए कार्यों और उपदेशों के प्रति सम्मान दिखाता है।
समाधि की प्रक्रिया
शरीर को गंगाजल से स्नान कराया जाता है। साधु को उनके पारंपरिक वस्त्रों में लपेटा जाता है। उन्हें समाधि देते समय पद्मासन (योग मुद्रा) में बैठाया जाता है। यह उनकी तपस्या और साधना का प्रतीक है। एक विशेष स्थान चुना जाता है, जो आमतौर पर धार्मिक स्थल या आश्रम होता है। वहां एक गड्ढा खोदा जाता है, जिसमें साधु को योग मुद्रा में रखा जाता है। उसके बाद इसे मिट्टी, फूलों, और धार्मिक सामग्रियों से ढक दिया जाता है।
दाह संस्कार क्यों नहीं किया जाता?
साधु-संत को यह मान्यता होती है कि वे अपने कर्मों से मुक्त हो चुके हैं। दाह संस्कार कर्मों को समाप्त करने का तरीका है, लेकिन साधु इस चक्र से पहले ही मुक्त हो जाते हैं। साधु-संत अपना परिवार और सांसारिक जीवन पहले ही त्याग चुके होते हैं। दाह संस्कार मुख्य रूप से परिवार और समाज से जुड़ा होता है, जो साधुओं पर लागू नहीं होता। साधु का जीवन प्रकृति और ब्रह्मांड से जुड़ा होता है। उनका शरीर प्रकृति में बिना जलाए विलीन कर दिया जाता है।
कुछ विशेष परंपराएं
- कुछ साधु, विशेष रूप से नागा साधु, गंगा या अन्य पवित्र नदियों में जल समाधि लेते हैं।
- कुछ साधु अपने शरीर को जंगल में छोड़ देते हैं, जहां प्रकृति स्वयं इसे ग्रहण कर लेती है।
- कई साधु उस स्थान पर समाधि लेते हैं, जहां उन्होंने अपनी तपस्या की थी।
साधु-संतों का अंतिम संस्कार समाधि के रूप में करना उनके आध्यात्मिक स्तर, तपस्या, और सांसारिक मोह-माया से मुक्ति का सम्मान है। यह प्रक्रिया उनकी शिक्षाओं और जीवन के प्रति आदर प्रकट करने का तरीका है। साधु-संतों को समाधि देने की परंपरा हमें यह सिखाती है कि आत्मा अजर-अमर है और यह शरीर से परे जाकर ब्रह्मांड का हिस्सा बनती है। यह परंपरा साधु-संतों की मोक्ष प्राप्ति और उनके जीवन की पवित्रता का प्रतीक है।