सिखों की आन- बान- शान अमृतसर के हरमंदिर साहिब दुनिया भर में एक अनूठी मिसाल पेश करता है। यहां जाति, वर्ग, लिंग और धर्म को पीछे रखकर बिना किसी भेद-भाव के लोगों को लंगर प्रसाद बांटा जाता है। दुनिया में सबसे बड़ी कम्युनिटी किचन यानी कि सामुदायिक रसोई में सभी धर्मों के लोग समान रूप से सेवा करते हैं। सिख पंथ के संस्थापक गुरु नानक देव की 552वीं जयंती के अवसर पर हम आपको बताते हैं, हरमंदिर साहिब में लगने वाले लंगर से जुड़े अहम तथ्य।
कब हुई थी लंगर की शुरुआत
-यहां पूरे साल यानी दिन-रात चौबीसों घंटे लंगर चलता है।
-यह परंपरा सदियों से चली आ रही है
-लंगर की शुरुआत सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक देव ने की थी
-नानक देव ही सिख धर्म के प्रथम गुरु थे
-उनके बाद के गुरुओं ने लंगर की पंरपरा को आगे बढ़ाया।
एक दिन में लाखों लोग खाते हैं लंगर
-स्वर्ण मंदिर में रोजाना करीब 1 लाख लोग लंगर खाते हैं।
- त्योहारों पर और वीकेंड पर यह संख्या डबल हो जाती है।
-यहां रोजाना 7000 किलो गेहूं का आटा, 1300 किलो दाल, 1200 किलो चावल और 500 किलो मक्खन इस्तेमाल होता है।
-यहां बर्तन तीन बार अलग-अलग ग्रुप के वॉलंटियर्स धोते हैं।
-रोटियां इलेक्ट्रिक मशीन से बनाई जाती हैं, इससे हर घंटे 3000 से 4000 रोटियां हर घंटे बन जाती हैं।
-वहीं महिलाएं भी हर घंटे करीब 2000 रोटियां बना लेती हैं।
- यहां खाना पकाने के लिए 100 सिलेंडर और 500 किलो लकड़ी लगती है।
-यह लंगर सबके लिए होता है। यह खाना वॉलंटियर्स सर्व करते हैं।
ये बात शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि लंगर में तैयार भोजन रोजाना तीन बार अमृतसर में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) द्वारा संचालित दो अस्पतालों में भ भेजा जाता है। खासतौर से उस वॉर्ड में भोजन जरूर भेजा जाता है, जहां मानसिक रोगों के मरीजों और नशीली दवाओं के आदी लोग अस्पताल में भर्ती होते हैं। लंगर के भोजन में दाल, चावल, चपाती, अचार और एक सब्जी शामिल होती है. इसके साथ मीठे के तौर पर खीर होती है. सुबह में चाय लंगर होता है, जिसमें चाय के साथ मठरी होती है।