बच्चे को जन्म देने के बाद मां को 40 दिन का परहेज करने की परंपरा कई सांस्कृतिक और स्वास्थ्य कारणों पर आधारित है। यह समय नई मां के शरीर को पूरी तरह से ठीक होने और नवजात शिशु की देखभाल के लिए उचित माहौल प्रदान करने के लिए होता है। इस दौरान नानी-दादी के कई नुस्खे और परहेज प्रभावी साबित होते हैं। इन नुस्खों और परहेज का पालन करके नई मां और नवजात दोनों का स्वास्थ्य सुनिश्चित किया जा सकता है।
40 दिन का परहेज क्यों?
प्रसव के दौरान महिला के शरीर में कई बदलाव होते हैं। 40 दिन का समय शरीर को ठीक होने और पुनः सामान्य स्थिति में आने के लिए आवश्यक होता है। गर्भाशय को अपनी सामान्य स्थिति में लौटने में समय लगता है और इस दौरान रक्तस्राव भी हो सकता है, जिसे "लोचिया" कहा जाता है।
संक्रमण से बचाव
प्रसव के बाद मां का शरीर संक्रमण के प्रति संवेदनशील होता है। परहेज करने से मां को आराम मिलता है और संक्रमण से बचाव होता है।नवजात शिशु की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है और वह संक्रमण के प्रति संवेदनशील होता है। इस दौरान मां और बच्चे दोनों को साफ-सफाई और सुरक्षा का ध्यान रखने की आवश्यकता होती है।
नानी-दादी के नुस्खे
गोंद के लड्डू: प्रसव के बाद मां को गोंद के लड्डू खिलाए जाते हैं, जो ऊर्जा बढ़ाने और शरीर को ताकत देने के लिए लाभकारी होते हैं।
मूंग की दाल: हल्का और पचने में आसान, मूंग की दाल मां के लिए अच्छी होती है।
हरी सब्जियां और दूध: विटामिन और कैल्शियम की पूर्ति के लिए आवश्यक हैं।
अजवाइन और सौंफ का पानी: पाचन को सुधारने और गैस की समस्या से राहत पाने के लिए दिया जाता है।
तुलसी और अदरक का काढ़ा: इम्यूनिटी बढ़ाने और सर्दी-खांसी से बचाने के लिए यह काढ़ा दिया जाता है।
मालिश: नारियल या तिल के तेल से नियमित मालिश शरीर को आराम देती है और मांसपेशियों को मजबूत बनाती है।
बाथ: हर्बल बाथ जिसमें नीम के पत्ते और हल्दी का उपयोग होता है, संक्रमण से बचाव करता है।
नई मां को ध्यान रखने योग्य बातें
नई मां पूरी तरह से आराम करें और शारीरिक गतिविधियों से बचें। शरीर को ठीक होने के लिए समय दें। इस दौरान मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी ध्यान रखना जरूरी है। प्रसव के बाद अवसाद (पोस्टपार्टम डिप्रेशन) का खतरा होता है, इसलिए परिवार का समर्थन आवश्यक है।
परिवार की क्या है जिम्मेदारी?
शिशु और मां की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें। नवजात को गंदगी और संक्रमण से बचाएं। मां को अपने बच्चे को दूध पिलाने की प्रक्रिया में सहायता करें। सही पोषण और जलयोजन सुनिश्चित करें। नियमित चेक-अप कराएं और डॉक्टर की सलाह का पालन करें। 40 दिन का यह समय मां के शरीर और मन को पुनः स्वस्थ और मजबूत बनाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।