देश के उच्च न्यायपालिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगभग न के बराबर है। 1950 में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना होने के बाद से अब तक आठ महिलाओं को भारतीय की सर्वोच्च अदालत में न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त किया गया है। इसमें सबसे पहला नाम आता है रिटायर्ड चीफ जस्टिस लीला सेठ का। उन्होंने अपने संघर्षों से एक बड़ा मुकाम हसिल कर इतिहास रचने के साथ- साथ एक मिसाल भी पेश की। तभी तो उन्हे 'मदर इन लॉ' के नाम से भी जाना जाता है।
आसान नहीं था यह सफर
लीला सेठ हिमाचल हाईकोर्ट की पहली महिला चीफ जस्टिस थी, लेकिन यह सफर उनके लिए आसान नहीं था। बहुत छोटी उम्र में पिता को खाेने के बाद भी उन्होंने अपने कदमों को कभी रुकने नहीं दिया। उनका आत्मविश्वास उन्हें इस मुकाम तक ले आया। पिता के जाने के बाद भी लीला की मां ने उनकी पढ़ाई में कोई कमी नहीं छोड़ी। उन्होंने दार्जीलिंग के लॉरेटो कंवेंट स्कूल से अपनी शिक्षा प्राप्त की।
एक बच्चे के बाद परीक्षा में किया टॉप
लीला सेठ नेस्टेनोग्राफर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। शादी के बाद वो लंदन चली गईं, जहां उन्होंने एक बार फिर अपनी पढ़ाई शुरू की। एक बच्चे की मां लीला ने 27 साल की उम्र में लंदन बार परीक्षा में टॉप किया। भारत लौटने पर उन्हे पहला ब्रेक कलकत्ता हाईकोर्ट में मिला। हालांकि सामाजिक रूढ़िवादिता के कारण उन्हे यह सलाह दी गई कि वह सब छोडकर अपने परिवार पर ध्यान दे। हालांकि लीला सेठ ने इन सब की परवाह ना करते हुए आगे बढने का फैसला किया।
समलैंगिकों के अधिकार के लिए भी उठाई आवाज
1958 में उनके पति का पटना तबादला होने के बाद उन्होंने करीब 10 साल तक पटना हाईकोर्ट में प्रैक्टिस की। लीला भारत में महिलाओं के अधिकारों को लेकर अहम फैसले देने वाली कमेटियों का हिस्सा रही हैं। उन्होंने सिर्फ महिलाओं के लिए ही नहीं बल्कि समलैंगिकों के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई। इतिहास में अपना नाम लिखने वाली मदर ऑफ़ लॉ यानी लीला सेठ ने हमें सिखाया कि किस तरह विपरीत परिस्थितियों में भी बिना हिम्मत हारे, बिना किसी के आगे झुके और बिना किसी झिझक के आगे बढ़ते रहने से सफलता मिलती है।