नारी डेस्क: शरीर में ज्यादा फैट (FAT) यानी चर्बी आपको कई बीमारियों के करीब ले आती है। ये फैट आपके शरीर के साथ- साथ दिमाग पर भी गहरा असर डालता है जिसके बारे में लोगों को ज्यादा मालूम नहीं है। हाल ही में एम्स दिल्ली के ताजे अध्ययन में सामने आया है कि मोटापा केवल शारीरिक स्वास्थ्य को ही नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य और सोचने-समझने की क्षमता (कॉग्निटिव फंक्शन) को भी प्रभावित कर सकता है।
मस्तिष्क की कार्यक्षमता को प्रभावित करता है मोटापा
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड्स की थोड़ी सी भी मात्रा याददाश्त कमजोर होने और स्ट्रोक का खतरा बढ़ा देती है। अध्ययनों से पता चला है कि मोटे लोगों में मस्तिष्क के कुछ हिस्सों, जैसे कि फ्रंटल और टेम्पोरल लोब्स, जो सोचने और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं से जुड़े होते हैं, का आकार छोटा हो सकता है। यह कॉग्निटिव डिक्लाइन की संभावना बढ़ा सकता है। मोटापा मस्तिष्क की कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकता है और सोचने-समझने की क्षमता को कमजोर कर सकता है।
स्लीप एपनिया
मोटे लोगों में अक्सर स्लीप एपनिया की समस्या होती है, जिसमें सोते समय सांस लेने में रुकावट होती है। इससे नींद की गुणवत्ता प्रभावित होती है, जिससे मस्तिष्क का रेस्टोरेशन सही तरीके से नहीं हो पाता। नींद की कमी के कारण ध्यान, एकाग्रता, और निर्णय लेने की क्षमता में कमी आ जाती है। मोटापे के कारण अवसाद (डिप्रेशन), चिंता (एंग्जाइटी) और तनावजैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं भी बढ़ सकती हैं। ये मानसिक समस्याएं मस्तिष्क की कार्यक्षमता पर सीधा प्रभाव डालती हैं और व्यक्ति की सोचने और समझने की क्षमता को कमजोर कर सकती हैं।
मेमोरी लॉस और डिमेंशिया का खतरा
मोटापे से ग्रस्त लोगों में मेमोरी लॉस और डिमेंशिया जैसी बीमारियों का खतरा अधिक होता है। शरीर में अतिरिक्त वसा मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकती है। मोटापे के कारण मानसिक थकान और आलस की भावना बढ़ सकती है, जिससे मूड स्विंग्स होते हैं और व्यक्ति का ध्यान केंद्रित करने की क्षमता प्रभावित होती है। इससे निर्णय लेने और समस्या सुलझाने की क्षमता भी कमजोर हो जाती है।
मोटापे से शरीर में सूजन
मोटापे से शरीर में सूजन बढ़ जाती है, जो मस्तिष्क की कोशिकाओं को भी प्रभावित करती है। सूजन की वजह से न्यूरोट्रांसमिटर्स (जो मस्तिष्क में सिग्नलिंग के लिए जिम्मेदार होते हैं) पर बुरा असर पड़ता है, जिससे स्मृति और ध्यान की क्षमता में कमी आ सकती है। मोटापे के कारण शरीर में इंसुलिन प्रतिरोध बढ़ जाता है, जिससे मस्तिष्क में इंसुलिन सिग्नलिंग प्रभावित होती है। इंसुलिन सिग्नलिंग मस्तिष्क में स्मृति, सीखने और ध्यान की प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक होती है, और जब यह बाधित होती है, तो इंसान की सोचने-समझने की क्षमता कमजोर हो सकती है।
इससे बचने के तरीके
- संतुलित आहार और व्यायाम के जरिए वजन कम करने से मस्तिष्क की कार्यक्षमता में सुधार हो सकता है।
- नियमित नींद और तनाव प्रबंधन से मस्तिष्क के कार्य बेहतर होते हैं।
- शारीरिक और मानसिक फिटनेस को बनाए रखने के लिए मेडिटेशन और ब्रेन ट्रेनिंग एक्सरसाइज भी फायदेमंद हो सकती हैं।