Migraine Treatment in Hindi : आयुर्वेद में अर्धावभेद (शीश के आधे हिस्से में दर्द) और अनंतवात (शीश में एकांगी दर्द होना), ये दो अवस्थाएं माइग्रेन ( अर्धशिर्षि) से मेल खाती हैं। क्रोध, निराशा, अवसाद, मानसिक संघर्ष, अपच कोई विशिष्ट भोजन अथवा मौसम, इनमें से कोई भी कारण माइग्रेन को सक्रिय कर सकता हैं। कुछ ब्लड प्रैशर या दमे की दवाइयों के पार्श्व प्रभाव से भी माइग्रेन ट्रिगर हो जाता है। इसलिए किस कारण से आपका माइग्रेन सक्रिय होता है, इस पर गौर आपको स्वंय ही करना पड़ेगा। कारण जो भी हो, बढ़ा हुआ पित्त दोष ही इसकी मूल वजह है। असंतुलित पित्त दोष पाचन क्रिया में बाधा उत्पन्न करता है। जिसके द्धावा निर्मित आम, मनोवह स्रोत्रों (मानसिक प्रणालियों) में इक्ट्ठा हो जाता है, जिसका परिणाम माइग्रेन होता है।
माइग्रेन से बचने के लिए किसी भी प्रकार की अति से बचे। आपकी जीवन शैली का आधार हर चीज में संयम व संतुलन होना चाहिए। दर्दनिवारक दवाइयों के सेवन से बचें क्योंकि वे इस समस्या को और बढ़ा देती हैं। क्योंकि उनके प्रभाव के कम होते ही सरदर्द की आवृति बढ़ा जाती है, तथा इसलिए भी क्योंकि फिर आप इस समस्या के मुख्य कारण पर ध्यान न देकर दर्द और दर्दनिवारक दवाइयों के टुष्चक्र में फंसकर रह जाते हैं। ऐसा करने के बजाए आप एक कमरे में शांति से लेट जाए और अपनी गर्दन अथवा माथे पर आईस पैक रखें। इसके अलावा आप अदरक को पीस कर उसका लेप भी अपने माथे पर लगा सकते हैं।
कुछ और आराम पाने हेतु गिलोय का रस निचोड़कर 1 छोटे चम्मच शहद के साथ सेवन करें। इसके अलावा तीन ग्राम धनिए के बीज, पांच ग्राम लैवेेेंडर फूल, पांच काली मिर्च के बीज और पांच बादाम लिजिए। ध्यान रहे कि बादामों को रातभर पानी में भिगोकर, उनके छिलके निकाल कर ही उनको पीसें। पानी के साथ इस मिश्रण को पीस कर और छानकर सूर्योदय से पूर्व इसका सेवन करें।
एजलेस डाइमेंशन नामक पुस्तक में मैंने कुछ ऐसी तकनीकों की जानकारी दी है जो न केवल शरीर को शुद्ध और डिटॉक्स कर देती हैं अपितु शरीर को संतुलन में लाकर रोगमुक्त बना देती हैं। नाड़ी शोधन प्राणायाम के नियमित अभ्यास से शरीर की नाड़ियों का शुद्धिकरण होता है और प्राण के प्रवाह में सुधार आता है, जिससे तनाव कम होता है और सिरदर्द से भी राहत मिलती है एवं शरीर स्वस्थ व तेजस्वी बन जाता है।
योगी अश्विनी