इस साल का आखिरी सूर्य ग्रहण 25 अक्टूबर यानी आज है। इस सूर्यग्रहण के कारण दीपावली के बाद आने वाले त्योहार की तिथियां आगे बढ़ गई हैं। हिंदू धर्म में सूर्य ग्रहण के दिन सभी प्रमुख मंदिरों के द्वार सूर्य ग्रहण खत्म होने तक बंद रखे जाते हैं। इसके अलावा मान्यताओं के अनुसार ग्रहण के दिन भोजन आदि खाद्य पदार्थों में भी तुलसी की पत्ती डालकर ही उन्हें ग्रहण करना चाहिए। ज्योतिषों का कहना है कि सूर्य ग्रहण आज सुबह 4:29 से शुरू हो गया है और शाम 5:22 तक रहेगा। इस पूरे अंतराल में प्रसिद्ध मंदिरों के कपाट शाम को 6:30 बजे तक नहीं खुलेंगे। ग्रहण के दौरान मंदिर के कपाट क्यों बंद रखे जाते हैं इस विषय में आझ हम आपको बताने जा रहे हैं।
ग्रहण से जुड़ी जरूरी बातें
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ग्रहण से जुड़ी कुछ खास परंपराएं प्राचीन समय से चली आ रही है। मान्यताओं के अनुसार इस समय में भोजन नहीं करना चाहिए। साथ ही ग्रहण के दौरान पूजा-पाठ पर भी इसका प्रभाव अधिक पड़ता है। इन्हीं की तरह एक परंपरा और है कि मंदिरों के दरवाजे भी बंद किए जाते हैं। हिंदू धर्म में मंदिरों के अलावा घर में मौजूद पूजा स्थल को भी कपड़ों से अच्छी तरह से ढक दिया जाता है। इस परंपरा के पीछे कई प्रकार की धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं।
मान्यताओं के मुताबिक ग्रहण के दौरान दैवीय शक्तियों का असर कम हो जाता है और असुरी शक्तियों का प्रभाव बढ़ जाता है। इसी वजह से इस समय पाठ-पूजा करने की मनाही होती है।
ऐसा भी कहा जाता है कि इस समय मौन रहकर मंत्र उच्चारण करना चाहिए। साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो ग्रहण के समय पृथ्वी के वायुमंडल में हानिकारक किरणों का प्रभाव ज्यादा होता है। इसलिए इस दौरान खाने-पीने की मनाही होती है।
हिंदू धर्म में ऐसा कहा गया है कि ग्रहण के पूरी तरह से खत्म होने के बाद मंदिरों में रखी सभी मूर्तियों को अच्छी तरह से धोया जाना चाहिए। और मंदिरों की भी सही ढंग से शुद्धिकरण होना चाहिए।
यह सब करने के बाद ही प्रतिमाओं को दोबारा से मंदिर में स्थापित किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
क्यों किए जाते हैं मंदिरें के कपाट बंद
पुराणों में इस बात को बहुत ही साफ व स्पष्ट शब्दों में बताया गया है कि ग्रहण से पहले सूतक काल में भगवान की मूर्तियों को छुआ नहीं जाता। ग्रहण के दुष्प्रभाव से दूर रखने के लिए ऐसा किया जाता है। सूतक लगने के साथ-साथ मंदिरों के कपाट भी बंद कर दिए जाते हैं और पूजा-पाठ करना भी सही नहीं माना जाता। हालांकि महाकाल को मंदिरों के कपाट ग्रहण में बंद नहीं होते, लेकिन यहां मूर्तियों को स्पर्श नहीं किया जाता है और पूजापाठ भी नहीं होती है। वहीं आंध्र प्रदेश के चित्तूर में स्थित कालहटेश्वर मंदिर भी ग्रहण में बंद नहीं किया जाता है। इस मंदिर के प्रमुख देवता राहु और केतु हैं, इस कारण यह मंदिर ग्रहण में भी खुला रहता है। मंदिर में भगवान शिव की भी पूजा होती है।